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________________ [३९४] रसार्णवसुधाकरः पादाङ्गुष्ठालुलितकुसुमे कुट्टिमे पातिताक्षं नृन्तादस्याः स्थितमतितरां कान्तमृज्वायतार्धम् ।।600।। इत्यत्रेतरसमक्षं स्थितायाः संस्थानजातिवर्णनादिदं प्रत्यक्षदृष्टम्। (प्रत्यक्षदृष्ट) जैसे (मालविकाग्निमित्र २/६में)राजा- 'अहो! सभी अवस्थाओं में मनोहरता दूसरी शोभाओं को पुष्ट करती है। इसने अपना बायाँ हाथ अपने नितम्ब पर रख लिया है अत एव हाथ का कड़ा पहँचे पर रुक कर चुप हो गया है। दूसरा हाथ श्यामा की डाली के सामान ढीला लटका हुआ है। आँखें नीची करके पैर के अंगूठे से धरती पर बिखरे हुए फूलों को सरका रही है। इस प्रकार खड़ी होने से ऊपर का शरीर लम्बा और सीधा हो गया है। नाचने के समय भी यह ऐसी सुन्दर नहीं लगती थी जैसी अब लग रही है।।600।। अप्रत्यक्षदृष्ट यथा पद्मावत्याम् व्यत्यस्तपादकमलं वलितत्रिभङ्गीसौभाग्यमंसविरलीकृतकेशपाशम् । पिच्छावतंसमुररीकृतवंशनालं व्यामोहनं नवमुपैमि कृपाविशेषम् ।।601 ।। इत्यात्राप्रत्यक्षस्यैव गोपालसुन्दरस्य संस्थानविशेषजातिवर्णनादपि दृष्टवदाभासनादिदमप्रत्यक्षदृष्टम्। अप्रत्यक्षदृष्ट जैसे पद्मावती में पदकमल को एक दूसरे पर चढ़ाये हुए घुमावदार त्रिभङ्गिमा से मनोहर, कन्धों पर बिखरे हुए केशसमूह वाले, मोर के पंख के आभूषण वाले, वक्षस्थल पर वंशनाल (बाँसुरी) वाले, व्यामोहित कर लेने वाले, नूतन कृपाविशेष से युक्त (कृष्ण) के पास जा रही हूँ।।600।। यहाँ अप्रत्यक्ष (अविद्यमान) सुन्दर गोपाल के स्थिति- विशेष के समूह के वर्णन होने से भी दृष्टवत् आभास के कारण यह अप्रत्यक्षदृष्ट है। श्रीशिङ्गभूपेन कवीश्वराणां विश्राणितानेकविभूषणेन । षट्त्रिंशदुक्तानि हि भूषणानि सलक्ष्मलक्ष्याणि मुनेमतेन ।।१२७।। कवीश्वरों से प्रदान किये गये अनेक विभूषण (उपाधियों) वाले श्रीशिङ्गभूपाल के द्वारा मुनि (भरत) के मत के अनुसार लक्षण और उदाहरण सहित छत्तीस भूषणों का निरूपण किया गया।।१२७॥
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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