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________________ [३८२] रसार्णवसुधाकरः यहाँ चन्द्रमा और चन्द्रकान्त इत्यादि उपमा से प्रत्यक्ष स्नेहरूप के विकार का कथन तुल्यतर्क है। अथ विचार: विचारस्त्वेकसाध्यस्य बहूपायोपवर्णनम् । (१८) विचार- एक ही साध्य का अनेक उपायों से वर्णन विचार कहलाता है।।११३पू.॥ यथा मालतीमाधवे. (१.३५)मकरन्दः- वयस्य माधव सर्वथा समाश्वसिहि या कौमुदी नयनयोर्भवतः सुजन्मा तस्या भवानपि मनोरथलब्धबन्धुः । तत्सङ्गमं प्रति सखे! न हि संशयोऽस्ति यस्मिन् विधिश्च मदनश्च कृताभियोगः ।।586।। अत्र सङ्गमरूपसाध्यार्थीसद्धये परस्परानुरागसिद्धिमदनरूपाणामुपायानां सद्भावकथनाद् विचारः। जैसे मालतीमाधव (१.३५) मेंमकरन्द- हे मित्र माधव! धैर्य धारण करो जो (मालती) आप के नेत्रों की चाँदनी है, सुन्दर जन्म वाले (आप) भी उसके अनुराग प्रबन्ध के आश्रय हैं। हे मित्र! मालती के समागम के प्रति सन्देह नहीं है, जिस (समागम) में ब्रह्मा और कामदेव ने अभिनिवेश किया है।।586।। यहाँ समागम रूप साध्यार्थ की सिद्धि के लिए परस्पर अनुराग सिद्धि कामरूप उपायों का सद्भाव कथन होने से विचार है। अथ तद्विपर्यय: विचारस्यान्यथाभावो विज्ञेयस्तद्विपर्ययः ।।११३।। (१९) तद्विपर्यय- विचार का अन्यथाभाव (अभाव) को तद्विपर्यय (उस विचार की विपरीतता) समझना चाहिए।।११३उ.॥ यथा रामानन्दे (उत्तररामचरिते ३/४५) व्यर्थ यत्र कवीन्द्रसख्यमपि मे वीर्य कपीनामपि प्रज्ञा जाम्बवतोऽपि यत्र न गतिः पुत्रस्य वायोरपि । मार्ग यत्र न विश्वकर्मतनयः कर्तुं नलोऽपि क्षमः सौमित्रेरपि पत्रिणामविषयस्तत्र प्रिया क्वासि मे ।।587।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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