SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयो विलासः यहाँ पति की कामना करने वाली मालती की प्रतिनिधि होने के कारण लवङ्गिका के प्रति कुवलयमाला को समर्पित करना दान है। अथ भेद: भेदस्तु कपटालापैः सुहृदां भेदकल्पना । (३) भेद- कपट युक्त बातों द्वारा मित्रों में विभेद उत्पन्न करना भेद कहलाता है ।। ८४पू. ।। यथा मालतीमाधवे (२.८) कामन्दकी " राज्ञः प्रियाय सुहृदे सचिवाय कार्याद् दत्त्वात्मजां भवतु निर्वृतिमानमत्याः । दुर्दर्शनेन घटतामियमप्यनेन धूमग्रहेण विमला शशिनः कलेव 11 (564) " मालती - (स्वगतम्) हा ताद तुमं पि णाम मम एव्वं ति सव्वहा जिदं मोअतिणा ( हा तात ! त्वमपि नाम ममैवमिति सर्वथा जितं भोगतृष्णया)। इत्यत्र कामन्दक्या मालतीतज्जनकयोर्भेदकल्पनं भेदः । जैसे मालतीमाधव (२.८) में [ ३५९ ] कामन्दकी हे मन्त्री जी ! (भूरिवसु) राजा के प्रिय मन्त्री (नन्दन) को कार्य के उद्देश्य से कन्यादान करके सुखी हों । दोषयुक्त दर्शन वाले धूमकेतु ग्रह से निर्मल चद्र-कला के समान यह (मालती ) भी अनिष्ट श्रम वाले इन (नन्दन) से सम्बद्ध हों 1156411 मालती- (अपने मन में) हाँ पिता जी ! आप भी इस प्रकार से मेरे जीवन में निरपेक्ष हैं, भोगतृष्णा ने सब प्रकार से जीत लिया है। यहाँ कामन्दकी के द्वारा मालती और उसके पिता में भेद उत्पन्न करना भेद है। अथ दण्ड: दण्डस्त्वविनयादीनां दृष्ट्या श्रुत्याथ तर्जनम् ।। ८४ ।। ( 4 ) दण्ड- देखने द्वारा अथवा सुनने से दुष्टों को डाँटना दण्ड कहलाता $11283.11 दृष्टया यथा मालतीमाधवे (५.३१) माधव:- 'रे रे पाप ! प्रणयिसखीसलीलपरिहासरसाधिगतै
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy