SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयो विलासः [३५३] भिश्च प्रकृतिभिर्भवदभिषेकसज्जस्तिष्ठत" इत्युपक्रम्य, "वशिष्ठः- (का दीयतां तव रघूद्वहः (१०/९८) सम्यगाशीरित्यादि पठति) रामः- आर्ष हि वचनं विभिन्नवक्तृकमपि न विसंवदति यदगस्त्यवाचा वसिष्ठोऽपि ब्रूते"(१०/९८ पद्यादनन्तरम्) इत्यन्तेन अगस्त्यलब्धाशीर्वादस्य वसिष्ठवचनसंवादेन स्थिरीकरणात् कृतिः। जैसे वहीं (बालरामायण में १०/९६) पद्य से पूर्व "(प्रवेश करके), हनूमान- महाराज मेरे द्वारा समाचार सुन कर भरत, शत्रुघ्न तथा अन्य प्रजाओं के साथ वसिष्ठ आप के अभिषेक करने के लिए तैयार बैठे हैं।" यहाँ से लेकर "वसिष्ठ- हे रघुकुलश्रेष्ठ तुम्हें क्या दिया जाय (१०/९८) इत्यादि आशीर्वाद को पढ़ते हैं। राम- ऋषिवचन विभिन्न वक्ताओं द्वारा भी विसंवादित नहीं होता। जो अगस्त्य की वाणी थी, वही वसिष्ठ भी बोलते हैं"(१०.९८ पद्य के बाद) यहाँ तक अगस्त्य द्वारा प्राप्त आशीर्वाद का वसिष्ठ के संवाद द्वारा स्थिरीकरण होने से कृति है। अथ भाषणम्मानाद्याप्तिर्भाषणम् (10) भाषण- सम्मान इत्यादि की प्राप्ति को भाषण कहते हैं। तथा तत्रैव (बालरामायणे)वसिष्ठः रामो दान्तदशाननः किमपरं सीता सतीष्वग्रणीः सौमित्रिः सदृशोऽस्तु कस्य समरे येनेन्द्रजिनिर्जितः । किं ब्रूमो भरतञ्च रामविरहे तत्पादुकाराधकं शत्रुघ्नः कथितोऽग्रजस्य च गुणैर्वन्द्यं कुटुम्बं रघोः ।।(10/102)558।। इत्यत्र वसिष्ठेन रामकुटुम्बस्य रामचन्द्रादिसत्पुरुषोत्पत्तिस्थानतया तल्लक्षणबहुमानप्राप्तिकथनाद्भाषणम्। जैसे वहीं (बालरामायण में) वसिष्ठ- राम ने रावण का वध किया, अधिक क्या कहें- सीता सतियों में श्रेष्ठ है और लक्ष्मण के समान कौन है जिसने युद्ध में मेघनाद को परास्त किया । भरत का क्या कहना है जो राम के विरह में उनकी पादुका की आराधना किये हैं, शत्रुघ्न की तो प्रशंसा अपने ज्येष्ठ भाई के ही गुणों से हो गयी।(10.102)।।558।।। यहाँ वसिष्ठ के द्वारा रामचन्द्र इत्यादि सत्पुरुषों की उत्पत्ति के कारण राम के कुटुम्बियों की अत्यधिक सम्मान प्राप्ति के कथन से भाषण है। अथोपगृहनम् उपगृहनमद्भुतप्राप्तिः ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy