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________________ [ ३४२ ] पूज्यसङ्कीर्तनाद् वा प्रस्तुतराक्षसवधरूपस्यार्थस्य प्रसञ्जनाद्वा प्रसङ्गः । जैसे वहीं बालरामायण के नवम अङ्क के प्रारम्भ में " ( प्रवेश करके ) यमदूत- महिषचिह्न वाले और सभी प्राणियों के विनाशक आदरणीय यमराज की प्रभावशालिता विश्व में बढ़ कर है" यहाँ से लेकर " दशरथ - भगवान देवराज! कृपा करके इधर दृष्टि डालिए " ( ९ / १८ पद्य से पूर्व ) तक यम, इन्द्र इत्यादि सम्माननीय लोगों के कीर्तन अथवा प्रस्तुत राक्षस वध रूपी कार्य को उपभोग में लाने से प्रसङ्ग है। अथ छलनम् - रसार्णवसुधाकरः अवमानादिकरणं कार्यार्थं छलनं विदुः । । ६५ ।। (8) छलन- कार्य (प्रयोजन) के लिए तिरस्कार (अपमान) करना छलन कहलाता है॥६५उ.।। यथा तत्रैव (बालरामयणे) - "चारण:- (कर्णं दत्वा आकाशे) किमाह रामभद्रः । रे रे राक्षसपुत्र! यद् गौरीचरणाब्जयोः प्रथमतस्त्यक्तप्रणामक्रियं प्रेमाद्रेण सविभ्रमेण च पुरां येनेक्षिता जानकी । लूनं ते तदिदं च राक्षसशिरो जातं च शान्तं मनः शेषच्छेदविधिस्तु सम्प्रति परं स्वर्बन्दिमोक्षाय मे ।। (9.40)543।। किमाह रावणः । रे रे क्षत्रियापुत्र ! सुलभविभ्रमचर्मचक्षुरसि" इत्युपक्रम्य" राम: - तदित्यमभिधानमपवित्रं ते वक्त्रम्। इतो निर्विशतु वधशुद्धिम् " । ( ९ / ४६ पद्यादनन्तरम्) इत्यन्तेन रामरावणाभ्यां परस्परावमानकरणाच्छलनम्। जैसे वहीं (बालरामायण में) "चारण- (ध्यान से सुनकर आकाश में) रामभद्र ने क्या कहा ? अरे-अरे राक्षसीपुत्र! जिसने प्रथमतः पार्वती के चरण रूपी कमलों में प्रणाम क्रिया को तोड़ दिया और पहले जिसने प्रेमाई होकर तथा विलास के साथ जानकी को देखा था तुझ राक्षस का वह मुख काट दिया गया और मेरा मन शान्त हो गया अब शेष मुखों का काटना तो स्वर्ग लोक के बन्दियों को मुक्त करने के लिए है। (9.40)।।543।। रावण ने क्या कहा ! अरे-अरे क्षत्रिय पुत्र ! जिसमें भ्रान्ति सहज सम्भव है, ऐसे चर्ममय नेत्र वाले हो” से लेकर "राम- इस प्रकार कहने से अपवित्र हुआ तुम्हारा मुख है। तो वह वध रूपी पवित्रता को प्राप्त करे " ( ९ / ४६ से बाद) तक राम और रावण के द्वारा परस्पर अपमान करने के कारण छलन है।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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