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________________ [३२०] रसार्णवसुधाकरः . जैसे वहीं (बालरामायण के चतुर्थ अङ्क में ४/५१ पद्य से पूर्व) "हेमप्रभा- परशुराम के दर्शन से कौतूहल उचित है' से लेकर “रामचन्द्र के सामने' तक रामचन्द्र के पराक्रम का कथन होने से सीता की अरति का उपशमन हो जाने से शम है। अथ नर्म परिहासप्रधानं यद्वचनं नर्म तद्विदुः । (5) नर्म- (मनोरञ्जन के लिए प्रयुक्त) परिहास- प्रधान कथन नर्म कहलाता है।।४५पू.॥ यथा तत्रैव (बालरामायणे) तृतीयेऽके'रामः- (सकण्ठानुरोधम्) वाचा कार्मुकमस्य कौशिकपतेरारोपणायार्पितं मद्दोर्दण्डहठाञ्चतेन तदिदं भग्नं कृतन्यक्कृतिः । नो जाने जनकस्तदत्र भगवान् व्रीडावशादुत्तरं निक्षेप्ने नतकन्धरो भगवते रुद्राय किं दास्यति ।।(3.71)515।। इत्यत्र जनकाधिपापलापेन हासप्रधानं नर्म। जैसे- वहीं (बालरामायण के) तृतीय अङ्क मेंराम- (रुद्ध कण्ठ से) इस कौशिकपति विश्वामित्र के कहने से यह धनुष चढ़ाने के लिए मुझे दिया गया, वह मेरे बाहुदण्ड के हठपूर्वक चढ़ाने से टूट गया। मैं नहीं समझा कि महाराज जनक लज्जावश नीची गर्दन करके त्रिपुरनाशक शङ्कर भगवान् को क्या उत्तर देंगे।। (3.71)।। ।।515।। यहाँ जनक के प्रति अपलाप के कारण हास- प्रधान नर्म है। अथ नर्मद्युतिः क्रोधस्यापहन्वार्थं यद्धास्यं नर्मद्युतिर्मता ।।४५।। (6) नर्मद्युति- (परिहास से उत्पन्न) क्रोध को छिपाने के लिए जो हास्य होता है, वह नर्मद्युति कहलाता है।।४५उ.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे) चतुर्थेऽके'विश्वामित्रः - (जामदग्न्यं प्रति) रामो शिष्यो भृगुभव भवान् भगिनेयीसुतो मे वामे बाहावत तदितरे कार्यतः को विशेषः । दिव्यास्त्राणां तव पशुपतेरस्य लाभस्तु मत्त
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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