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________________ [३१०] रसार्णवसुधाकरः पुरीं निमीनां मिथिलामिमां च - तां चाप्ययोध्यां रघुराजधानीम् ।।506 ।। कुलपुत्रकेति सप्रसादमाश्लिष्टोऽस्मि" इत्युपक्रम्य "स हि नक्तञ्चराणां निसर्गामित्रो विश्वामित्रो व्रतचर्यया वीरव्रतचर्यया च समर्थो दशरथोऽपि तथाविध एव' (१/२५ पद्यादनन्तरम् ) इत्यन्तेन विश्वामित्रारम्भस्य माल्यवदादिवितर्कगोचरत्वेन बहुलीकरणाद् परिकरः। जैसे- वहीं (बालरामायण प्रथम अङ्क (१.२३) में ही “(तापस के कपटवेश में प्रवेश करके) राक्षस- आज विश्वामित्र का समाचार जानने के लिए तथा निमिवंशीय राजाओं की नगरी मिथिला और रघुवंशियों की राजधानी उस अयोध्या में जाने के लिए माल्यवान् ने भेजा है।।506।। और 'कुलपुत्रक' ऐसा कह कर प्रसन्नतापूर्वक मुझे यह आदेश मिला है" से लेकर "विश्वामित्र राक्षसों के स्वभावतः शत्रु है, तप और पराक्रम से वे समर्थ भी हैं। दशरथ भी वैसे ही है'' (१.२५ से बाद) तक माल्यवान् इत्यादि के तर्क-वितर्क से स्पष्ट होने वाले विश्वामित्र के कथन का विस्तार होने से परिकर है। अथ परिन्यासः - बीजनिष्पत्तिकथनं परिन्यास इतीर्यते ।।३३।। यथा तत्रैव (बाल रामायणे) राक्षस:- (पुरोऽवलोक्य) कथं तापसः ! (प्रत्यभिज्ञाय) तत्रापि विश्वामित्रधर्मपुत्रः शुनशेपः' इत्युपक्रम्य सम्प्रत्येव राक्षभयात् सत्रे दीक्षिष्यमाणः स भगवान् गोप्तारं रामभद्रं वरीतुमयोध्यां गतः। । ___ राक्षसः- (सत्रासं स्वगतम् ) हन्त! कथमेतदपि निष्पन्नम्। (प्रकाशम्) भगवन्! मा कोपीः' इत्यादिना (स्वगतम्) कृतं यत् कर्त्तव्यम् । सम्प्रति चारसञ्चारस्यायमवसरः'(१/ २७पद्यादनन्तरम्) इत्यन्तेन विवामित्रानुभावकथनाद् राक्षसत्रासकथनाच्च बीजनिष्यत्ते परिन्यासः। (३) परिन्यास- बीज की उत्पत्ति का कथन परिन्यास कहलाता है।३३उ.।। जैसे वहीं (बालरामायण के प्रथम अङ्क में) "राक्षस- (सामने देखकर) क्या तपस्वी है? (पहचान कर) उसमें भी विश्वामित्र का धर्मपुत्र शुन:शेप है" यहाँ से लेकर "अभी ही यज्ञ में दीक्षित होने वाले (विश्वामित्र) राक्षसों के भय से रक्षा के लिए रामचन्द्र को लेने अयोध्या गये हैं। राक्षस- (भयपूर्वक अपने मन में) अरे ! क्या यह भी हो गया। (प्रकटरूप से) भगवन् ! कुद्ध मत होइए।' इत्यादि से लेकर (अपने मन में) जो करना था कर लिया। इस समय गुप्तचर के कार्य का समय है (१/
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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