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________________ तृतीयो विलासः [ ३०७] यथा तत्रैव प्रतिमुखसन्यौ ताटकानिपातनभूतपतिधनुर्दलनादिषु रामस्य यत्नः। (२) यत्न- उस फल की प्राप्ति में उत्सुकतापूर्वक कर्म करना (वर्तन) यत्न कहलाता है।।२४पू.।। जैसे- वहीं ( बालरामायण की) प्रतिमुख सन्धि में ताड़का का वध और शङ्कर जी के धनुष को तोड़ने इत्यादि में राम का यत्न है। अथ प्राप्त्याशा प्राप्त्याशा तु महार्थस्य सिद्धिसद्भावभावना ।।२४।। यथा तत्रैव- गर्भसन्धौ माल्यवन्मायाप्रयोगवनवाससीताहरणादिभिरन्तरिताया रामस्य परमोत्कर्षप्राप्तेधनुर्भगङ्गादिसुग्रीवसन्धिसेतुबन्धनादिभिः सिद्धिसद्भावभावनाकथनान प्राप्त्याशा। (३) प्राप्त्याशा- महान् फल की प्राप्ति होने की भावना प्राप्त्याशा कहलाती है।।२४उ.॥ जैसे- वहीं (बालरामायण की) गर्भसन्धि में माल्यवान् के माया प्रयोग, वनवास, सीता का अपहरण इत्यादि द्वारा व्यवधान होने से राम को चरमोत्कर्ष प्राप्ति के लिए शंकर जी के धनुष को तोड़ना इत्यादि, सुग्रीव-सन्धि, पुल बाँधना इत्यादि द्वारा फलप्राप्ति होने की भावना का कथन होने से प्राप्त्याशा है। अथ नियताप्तिः नियताप्तिरविघ्नेन कार्यसंसिद्धिनिश्चयः । यथा- तत्रैव विमर्शसन्यौ निखिलरक्षःकुलनिर्बहणादविघ्नेन रामस्य फलसंसिद्धिनिश्चयो नितातप्तिः। (४) नियताप्ति- विघ्नों के अभाव के कारण फलप्राप्ति का निश्चय हो जाना नियताप्ति कहलाता है।।२५पू.॥ __ जैसे- वहीं ( बालरामायण की) विमर्श सन्धि में सम्पूर्ण राक्षसकुलों के विनष्ट हो जाने से राम की फलप्राप्ति का निश्चय हो जाना नियताप्ति है। अथ फलागमः समग्रेष्टफलवाप्ति यकस्य फलागमः ।। २५।। यथा- तत्रैव निर्वहणसन्यौ रामस्य ताताज्ञानिर्वहणवैरप्रशमनराज्योपभोगैोंगोत्तरत्रिवर्गफललाभप्राप्तिः फलागमः। (५) फलागम- नायक की सम्पूर्ण अभीष्ट- फल की प्राप्ति फलागम कहलाती है।।२५उ.।। जैसे- वही (बालरामायण की) निर्वहण सन्धि में पिता की आज्ञा का निर्वाह, शत्रुता का शमन, राज्य के भोग से भी उत्कृष्ट भोग त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ और काम) का रसा.२३
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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