SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [xxx] 2. दशरूपक- दशरूपक के कर्ता आचार्य धनञ्जय है। ये मालवा के राजा परमारवंशीय महाराज मुञ्ज के सभापण्डित थे। इनके पिता का नाम विष्णु था। इसका उल्लेख धनञ्जय ने स्वयं दशरूपक में किया है-- विष्णोः सुतेनापि धनञ्जयेन विद्वन्मनोरागनिबन्धहेतुः। आविष्कृतं मुञ्जमहीशगोष्ठी वैदग्ध्यभाजा दशरूपमेतत् ॥ (दशरूपक 4.86) मुञ्जराज एक महान् योद्धा तथा कवि भी थे। इसी कारण वे वाक्पतिराज उत्पलराज, अमोघवर्ष, पृथ्वीवल्लभ, श्रीवल्लभ इत्यादि उपाधियों से विभूषित थे। मुञ्ज के भतीजे भोजराज ने स्वयं शृङ्गाप्रकाश और सरस्वतीकण्ठाभरण इत्यादि ग्रन्थों की रचना किया है। बुहलर के अनुसार मुञ्ज अपने पिता सीयक की मृत्यु के पश्चात् 974 ई. में राजगद्दी पर बैठे और 995 ई. तक शासन किया। इण्डियन एन्टीक्वेरी के अनुसार उस चालुक्य राजा तैलप द्वितीय ने मालवनरेश मुञ्ज को हरा दिया, जिस की मृत्यु 997-998 में हुई। अतः मुञ्ज का समय 974 ई0 से 995 माना गया है। इस प्रकार धनञ्जय का भी समय दसवीं शताब्दी का उत्तरार्ध ही निश्चित होता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें रूपक के मुख्य दस भेदों का विवेचन किया गया है। धनिक ने अपनी टीका का नाम दशरूपावलोक रखा है। धनञ्जय ने भी दशरूपक के 4.86 में दशरूप नाम का ही निर्देश किया है। इससे ज्ञात होता है। कि इसका दशरूप भी अपर नाम था। यह ग्रन्थ चार प्रकाश में विभक्त है। प्रथम प्रकाश में कथावस्तु और सन्धियों का निरूपण हुआ है। द्वितीय प्रकाश में नायक-नायिका भेद, नायिकाओं अलङ्कार और नाट्यवृत्तियों का निरूपण हुआ है। तृतीय प्रकाश में रूपकों के दश प्रकारों तथा चतुर्थ प्रकाश में रसों का वर्णन है। 3. अवलोक- यह दशरूपक पर धनिककृत टीका है। धनञ्जय ने मात्र तीन सौ कारिकाओं वाले दशरूपक में अत्यन्त संक्षेप में नाट्यशास्त्र-विषयक तथ्यों का प्रतिपादन किया था। धनिक की अवलोक टीका से ही धनञ्जय का दशरूपक अवलोकित हुआ। अवलोक की टीका से ज्ञात होता है कि धनिक विष्णु के पुत्र थे। इस प्रकार ये धनञ्जय के छोटे भाई थे। कुछ विद्वानों के अनुसार दशरूपक की कारिका और वृत्तिभाग के कर्ता एक ही व्यक्ति थे किन्तु अधिकांश विद्वान् दोनों के कर्ता को अलग-अलग मानते हैं क्योंकि अनेक स्थलों पर कारिकाओं और वृत्तिभाग में मतभेद दष्टिगोचर होता है। धनिक के जीवन के विषय में कोई तथ्य नहीं प्राप्त होता। हाल के अनुसार ये उत्पलराज के यहाँ
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy