SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रसार्णवसुधाकरः १. स्मित २. हसित ३. विहसित ४ अक्हसित ५. अपहसित और ६. अतिहसित ।। २२९उ. - २३०पू.।। २७६ ] स्मितं चालक्ष्यदर्शनं दिक्कपोलविकासकृत् ।। २३० ।। १. स्मित- स्मित हास्य उसे कहते है जिसमें नेत्र और गाल कुछ खिले हुए हों और दॉत न दिखलायी पड़े ।। २३०उ. । । यथा (कुवलयावल्याम् २.१५) - उत्फुल्लगण्डमण्डलमुल्लसितदृगन्तसूचिताकूतम् । नमितं तया मुखाम्बुजमुन्नमितं रङ्गसाम्राज्यम् ।।476।। अत्र गण्डमण्डलविकासदृगन्तोल्लासाभ्यां नायिकायाः स्मितं व्यज्यते । स्मित जैसे (कुवयलयावती २.१५) - खिले हुए कपोलों वाला तथा प्रफुल्लित आखों के कोरों से सूचित प्रयोजन वाला तथा उस नायिका द्वारा नीचे झुकाया गया सुखकमल रङ्गशाला के लोगों को ऊँचा उठा दिया।।476।। यहाँ गण्डमण्डल (गालों) विकसित हो जाने (खिल जाने) और नेत्रों के कोरों के उल्लसित (प्रफुल्लित) हो जाने के कारण नायिका का मुस्कराना व्यञ्जित होता है। तदेव लक्ष्यदशनशिखरं हसितं भवेत् । २. हसित - वही स्मित (हास्य) हसित कहलाता है जब उसमें दाँत कुछ दिखलायी पड़ने लगे।।२३०पू.।। यथा ( मालविकाग्निमित्रे २.१० ) - स्मयमानमायताक्ष्याः किञ्चिदभिव्यक्तदशनशोभि मुखम् । असमग्रकेसरमुछ्वसदिव पङ्कजं अत्र किञ्चिदभिव्यक्तदशनत्वादिदं हसितम् । दृष्टम् ।।477।। जैसे (मालविकाग्निमित्र २ / १० मे) - आज मेरी आँखों को विशाल नेत्रों वाली प्रिया के मुस्कराते हुए उस मुख का दर्शन मिल गया है जिसमें कुछ-कुछ दाँत दिखलाई पड़ रहे थे और जो उस खिलते हुए कमल के समान जान पड़ता है, जिसके केसर पूर्णरूप से न दिखायी दे रहे हो ।।477 ।। यहाँ दाँतों के कुछ-कुछ दिखलायी पड़ने के कारण हसित है। तदेव कुञ्चितापाङ्गगण्डं मधुरनिस्वनम् ।। २३१।। कालोचितं सानुरागमुक्तं विहसितं भवेत् । ३. विहसित - वही हसित (हास्य) विहसित कहलाता है जब उसमें नेत्रों के कोर और गाल थोड़ा सिकुड़ जाय, समयानुसार अनुराग प्रकट होता हो और मधुर ध्वनि सुनायी
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy