SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयो विलासः [ २६३] है।।२०९उ.।। यथा विहायैतन्मानव्यसनमनयोस्तन्वि! कुचयोविधेयस्ते प्रेयान् यदि वयमनुलध्यवचसः । सखीभ्यः स्निग्धाभ्यो गिरमिति निशम्येणनयना निवापाम्भो दत्ते नयनसलिलैर्मानसुहृदे ।।456।। जैसे- 'हे पतले शरीर वाली! मानहानि को छोड़ कर वचन का उल्लङ्घन करने वाली हम लोग तुम्हारे इन स्तनों पर जो तुम्हें प्रिय हो उस कार्य को सम्पादित करें' इस प्रकार (अपनी) प्रिय सखियों द्वारा कही गयी बात को सुनकर हरिणी के समान चञ्चल नेत्रों वाली (रमणी) ने मान करने वाले प्रियतम के लिए अपने नेत्रों के जल (आसुओं) से जल की भेंट प्रदान किया।।456।। व्याजेन भूषणादीनां प्रदानं दानमुच्यते । ३. दान- बहाने से (बहाना बनाकर) आभूषण इत्यादि का देना दान कहलाता है।।२१०पू.।। यथा (शिशुपाल वधे ७.५५) मुहुरुपहसितामिवालिनादैवितरसि नः कलिकां किमर्थमेनाम् । वसतिमुपगतेन धूर्त! तस्याः शठ! कलिरेव महांस्त्वयाद्य दत्तः ।।457 ।। जैसे शिशुपालवध ७/५५ में) भ्रमरों के नादों (ध्वनियों) से बार-बार हँसी गयी इस कलिका (पुष्प की कली) को हमारे लिए क्यों दे रहे हो? हे शठ! उस (सपत्नी) के घर ठहरे हुए तुम आज यह बड़ी भारी कलि (कल-झगड़ा) दे दी है। अत एव एक कलि (कलह) के दे चुकने पर पुनः दूसरी कली (पुष्प की कली) देना व्यर्थ है)।।457 ।। नतिःपादप्रणामः स्सात् तया यथा पिशुनवचनरोषात् किञ्चिदाकुञ्चिभ्रूः प्रणमति निजनाथे पादपर्यन्तपीठम् । युवतिरलमपाङ्गस्यन्दिनो बाष्पबिन्दू ननयत कुचयुग्मे निर्गुणां हारवल्लीम् ।।458 ।। नति- पैरों में प्रणाम करना नति कहलाता है।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy