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________________ [ xxv ] किया है- ( 1 ) बारह हजार श्लोकों वाला और ( 2 ) छ हजार श्लोकों वाला (षट्साहस्री संहिता) — एवं द्वादशसाहस्त्रः श्लोकैरेकं तदर्थतः । षड्भिः श्लोकसाहस्त्रैर्यो नाट्यवेदस्य सङ्ग्रहः । (भा.प्र.पृ. 287 ) सम्प्रति नाट्यशास्त्र के दो संस्करण उपलब्ध होते है - 1. निर्णय सागर मुम्बई से प्रकाशित 37 अध्याय वाला और 2. चौखम्बा संस्कृत सिरीज से प्रकाशित 36 अध्याय वाला । इनमें मुम्बई से प्रकाशित संस्करण की अपेक्षा चौखम्बा संस्कृत सिरीज से प्रकाशित संस्करण अधिक प्रामाणिक है। अभिनयगुप्त के अनुसार यह षट्त्रिंशक भरतसूत्रम् नाम से अभिहित है षट्त्रिंशकात्मकजगद्गगनावभाससंविन्मरीचिचयचुम्बितबिम्बशोभम् षट्त्रिंशकं भरतसूत्रमिदं विवृण्वन् वन्दे शिवं श्रुतितदर्थं विवेकधाम || ( अभिनवभारती - 2 ) नाट्यशास्त्र का प्रतिपाद्य - नाट्यशास्त्र के नाट्योत्पत्ति नामक प्रथम अध्याय में नाट्य की उत्पत्ति, मण्डपाध्याय नामक द्वितीय अध्याय में प्रेक्षागृह की रचना, रङ्गदैवतपूजन नामक तृतीय अध्याय में रङ्गदेवता की पूजा का विधान किया गया है। चतुर्थ अध्याय में ताण्डव-लक्षण, पञ्चम अध्याय में पूर्वरङ्ग और षष्ठ अध्याय में रस का विवेचन हुआ है। भावव्यञ्जक नामक सप्तम अध्याय में भावों, अङ्गाभिनय नामक अष्टम अध्याय में आङ्गिक अभिनयों, उपाङ्गाभिनय नामक नवम अध्याय में हाथ-पैर इत्यादि अङ्गों के अभिनयों, चारी- विधान नामक दशम अध्याय में चारी (नृत्य की गति में भेद ) तथा मण्डलविकल्पन नामक एकादश अध्याय में नृत्यगति की व्याख्या की गयी है। गतिप्रचार नामक द्वादश तथा कक्षाप्रवृत्तिधर्मी नामक त्रयोदश अध्याय में क्रमशः रङ्गभूमि में पात्रों के प्रवेश इत्यादि की विधियों तथा वृत्तियों और प्रवृत्तियों का विवेचन हुआ है । चतुर्दश और पञ्चदश अध्याय में वाचिक अभिनय, षोडश अध्याय में नाट्यलक्षण, छन्द, अलङ्कार, सप्तदश में काकुस्वरविधान और भाषाओं का विवेचन, रूपकाध्याय नामक अष्टादश अध्याय में दशरूपकों तथा एकोनविंश और विंश अध्याय में कथावस्तु, सन्धियों, सन्ध्यङ्गों और भारती इत्यादि वृत्तियों के अङ्गों का वर्णन हुआ है। एकविंश में अभिनय और वेशभूषा इत्यादि सामान्याभिनय नामक द्वाविंश अध्याय में हावभाव, प्रेम की दस अवस्थाओं और युवतियों के अलङ्कार इत्यादि पर विचार किया गया है। त्रयोविंश अध्याय में स्त्री की प्रकृति, चतुर्विंश अध्याय में नायक-नायिका भेद और चित्राभिनय नामक पञ्चविंश अध्याय में अभिनय विषयक निर्देश और नाट्योक्ति का विवेचन हुआ है। षड्विंश तथा सप्तविंश अध्याय में नाट्यप्रयोग,
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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