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________________ [ २२६] रसार्णवसुधाकरः .. स्वप्नशेषश्रवणजनितप्रत्ययकृता शान्तिः दिष्ट्येत्यादिवागारम्भेण व्यज्यते। प्रत्ययावधिता जैसे (वेणीसंहार २/१३ में) सौभाग्य से मैं आधी सुनी हुई (बात से प्रतीत) वञ्चना से उत्पन्न क्रोधवश (भानुमती के पास तक) नहीं चला गया। सौभाग्य से (कथा के) आगे कहे जाने पर (ही ) क्रोध के कारण मेरे द्वारा कुछ कठोर (वचन) नहीं कह डाला गया। सौभाग्य से शून्य हृदय वाले मुझ को विश्वास दिलाने के लिए (ही ) कथा समाप्ति को पहुँच गयी (अर्थात् कथा समाप्त हो गयी) सौभाग्य से संसार के झूठे आरोप से युक्त इस (भानुमती) से विहीन नहीं हुआ अर्थात् मैंने उसे मारकर संसार से विदा नहीं कर दिया। 1410।। यहाँ स्वप्न में वृत्तान्त सुनने की भ्रान्ति से उत्पन्न भानुमती- विषयक सुयोधन के रोष का स्वप्नशेष के सुनने से उत्पन्न विश्वास से की गयी शान्ति “सौभाग्य से' इत्यादि कथन से व्यञ्जित होती है।। द्वेधा निगदितः स्त्रीणां रोषः पुरुषगोचरः ।।१३९।। सपत्नीहेतुराधः स्यादन्यः स्यादन्यहेतुकः । सपत्नीहेतुको रोषो विप्रलम्भे प्रपञ्च्यते ।।१४०।। अन्यहेतुकृते त्वत्र क्रियाः पुरुषरोषवत् । पुरुषगोचर स्त्री का रोष- स्त्रियों का पुरुषगोचर (पुरुष-विषयक) रोष दो प्रकार का कहा गया है- सपत्नी हेतुक और अन्यहेतुका सपत्नीहेतुक रोष- सपत्नी हेतुक रोष विप्रलम्भ (शृङ्गार) के प्रसङ्ग में निरूपित किया जाएगा। अन्य हेतुक रोष- अन्यहेतुक रोष में पुरुष के रोष के समान विक्रियाएँ होती हैं।।१३९उ.-१४१पू.॥ यथा (अभिज्ञानशाकुन्तले ५.२३) मय्येव विस्मरणदारुणचित्तवृत्तौ वृत्तं रहः प्रणयमप्रतिपाद्यमाने । भेदाभ्रुवोः कुटिलयोरतिलोहिताक्ष्या भग्नं शरासनमिवातिरुषा स्मरस्य ।।411।। जैसे (अभिज्ञानशाकुन्तल ५/२३ में) जिसके मन का व्यापार भूल से कठोर हो गया है, उस मेरे एकान्त में घटित हुए प्रेम को अस्वीकार करने पर अत्यन्त क्रोध से चटक लाल नेत्रों वाली (शकुन्तला) ने टेढ़ी भौहों के भङ्ग (भू-भङ्ग या भृकुटित) से मानों कामदेव का धनुष तोड़ डाला।।411 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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