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________________ रसार्णवसुधाकरः. द्वारा किए गये पति के अपमान से क्रुद्ध होकर जब अपने शरीर का योगाग्नि में त्याग कर दिया था, तभी से शङ्कर ने भी विषय-वासना का त्याग कर दूसरी किसी स्त्री से विवाह नहीं किया । । 392 ।। यहाँ शङ्कर के चित्त का राग सती के समागम के अभाव के निश्चय से न तो स्थिर रहता है और न विषय के अभाव के कारण प्रकाशित होता है। | २१६ ] अचिरेणैव संसक्तश्चिरादपि न नश्यति ।। ११९ ।। अतीव शोभते योऽसौ माञ्जिष्ठो राग उच्यते । (इ) माजिष्ठ राग- जो शीघ्र उत्पन्न, बहुत दिनों तक नष्ट न होने वाला तथा अधिक शोभायमान होता है, वह राग माञ्जिष्ठ राग कहलाता है ।। ११९उ. - १२०पू. ॥ यथा (उत्तरामचरिते १/३९) अद्वैतं सुखदुःखयोरनुगतं सर्वास्ववस्थासु यद् विश्रामो हृदयस्य यत्र जरसा यस्मिन्नहार्यो रसः । कालेनावरणात्ययात् परिणते यत् स्नेहसारे स्थितं भद्रं तस्य सुमानुषस्य कथमप्येकं हि तत् प्राप्यते ।।393 ।। माञ्जिष्ठ राग जैसे ( उत्तररामचरित १ / ३९ में ) - जो (दाम्पत्य) सुख और दुःख में एकरूप हैं और सभी अवस्थाओं में अनुगत है, जिसमें हृदय का विश्राम है, जिसमें प्रीति बुढ़ापे से भी नहीं हट सकती है, जो कि समय से विवाह से लेकर मरणपर्यन्त, परिपक्व और उत्कृष्ट प्रेम में अवस्थित हैं, उस दाम्पत्य का वह एक कल्याण बड़े पुण्य से पाया जाता है ।। 393 ।। अथानुरागः राग एव स्वसंवेद्यदशां प्राप्याप्रकाशितः । । १२० ।। यावदाश्रयवृत्तिश्चेदनुराग इतीरितः । (६) अनुराग - अपनी संवेद्य दशा को प्राप्त करके उद्दीप्त और आश्रय वृत्ति वाला राग अनुराग कहलाता है ।। १२०उ. - १२१पू. ॥ यथा ममैव अश्रान्तकण्टकोद्गममनवरतस्वेदमविरतोत्कम्पम् 1139411 अनिशमुकुलितापाङ्गं मिथुनं कलयामि तदविनाभूतम् अत्र पार्वतीपरमेश्वरयो रतिः शरीरैक्यनित्यसम्बन्धेन यावदाश्रयवृत्तिरनुभूतसर्वं रागोपप्लवतया स्वसंवेद्यदशाप्रकाशितनित्यभोगरूपाचान्तरोमाञ्चादिभिरनुभावैर्व्यज्यते । अनुराग जैसे शिङ्ग भूपाल का ही अनवरत रोमाञ्चयुक्त, निरन्तर निकलते हुए पसीने वाला, सतत् कम्पन-सम्पन्न, लगातार
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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