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________________ |xx] ब्रह्मा ने अर्जित कला के प्रकाशन के लिए भरत को आदेश भी दिया। भरत ने उस नाट्यवेद में भारती, सात्वती, आरभटी इन वृत्तियों का समायोजन किया तथा उसे अत्यधिक रमणीय और आकर्षक बनाने के लिए उसमें सुकुमार साजसज्जा, स्त्रीसुलभ चेष्टाओं और कोमल शृङ्गार से परिपूर्ण कैशिकी वृत्ति का भी संयोजन किया। इस प्रकार संवाद इत्यादि वैदिक तत्त्वों और वृत्तियों से सुसज्जित नाट्य का सर्वप्रथम प्रयोग इन्द्रध्वज महोत्सव के अवसर पर किया गया जिसमें सभी प्रकार के विघ्नों के निराकरणार्थ प्रारम्भ में रङ्गपूजन का विधान किया गया। उसमें अभिनय की शोभावृद्धि के लिए प्रसन्न शिव द्वारा ताण्डव तथा पार्वती द्वारा लास्य नृत्य भी संयोजित किया गया। इस प्रकार अपने पुत्रों (शिष्यों) और अप्सराओं के साथ भरत ने नाट्यवेद का प्रयोग किया जो पूर्णरूपेण सफल रहा। ___ वैदिक वाङ्मय और नाट्यवेद- नाट्य में संवाद, अभिनय, गीत और रस की प्रधानता होती है। इन चारों तत्वों की वैदिक क्रिया-कलापों से ही कल्पना की गयी। वेदों के अन्तर्गत अनेक ऐसे स्थल प्राप्त होते हैं जो नाट्य-वेद की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। ऋग्वेद का संवादसूक्त नाट्य में प्रयुक्त संवादों की आधार-शिला है। इन्हें संस्कृत नाट्यों का मूल कहा जाय तो अत्युक्ति नहीं होगी। इसके लिए ऋग्वेदीय अगस्त्यलोपामुद्रासंवाद (1.79) इन्द्रमरुत्संवाद (1.165,170) विश्वामित्रनदीसंवाद (3.33) यमयमीसंवाद (10.10) इन्द्रइन्द्राणीवृषाकपिसंवाद (10.86) पुरुरवा-उर्वशीसंवाद (10.95) सरमापणिसंवाद (10.108) इत्यादि द्रष्टव्य हैं। इसी प्रकार यज्ञ के अवसर पर होने वाले ऋत्विजों के क्रियाकलापों के आधार नाट्य में अभिनय का पुट तथा गीतात्मक सामवेद से इसमें गीतों का समावेश हुआ- ऐसा प्रतीत होता है। मैक्समूलर के अनुसार कथित संवादसूक्त इन्द्र, मरुत् तथा अन्य देवताओं की स्तुति में उनके अनुयायियों द्वारा यज्ञ में गाये जाते थे। सिलवा लेवी के अनुसार सामवेदकाल में गान-कला अपने विकास की उत्कृष्टतम सीमा पर थी और ऋग्वेद में सुन्दर वस्त्र पहन कर स्त्रियों द्वारा अपने प्रेमियों को आकृष्ट करने का भी उल्लेख प्राप्त होता है। अतः यज्ञादि के अवसर पर नाट्याभिनय अवश्य होता रहा होगा। जर्मन पण्डित डा. हर्टल के अनुसार गेय सूक्तों को एक से अधिक लोग मिलकर गाते रहे होंगे। इस प्रकार वक्ताओं की भिन्नता हो जाती रही होगी जिससे नाट्याभिनय प्रेरित हुआ होगा। प्रो. वान्टीडर के अनुसार संवादसूक्तों के गान के साथ नृत्य भी होता रहा होगा क्योंकि सङ्गीत और नृत्य का अभिन्न सम्बन्ध होता है। इस प्रकार गेय और अभिनय दोनों तत्त्व यहाँ मिल जाते हैं जो नाट्य का
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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