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________________ द्वितीयो विलासः [१९१] यहाँ सीता से विरह के कारण रावण का वसन्त इत्यादि विषयक द्वेष से तद्तद् अधिष्ठाता देवताओं के पीटने की आज्ञा इत्यादि अनुभावों से चपलता द्योतित होती है। अथ निद्रा मदस्वभावव्यायामनिश्चिन्तत्वश्रमादिभिः ।।८७।। मनोनिमीलनं निद्रा चेष्टास्तत्रास्यगौरवम् । आघूर्णमाननेत्रत्वमङ्गानां परिवर्तनम् ।।८८।। निःश्वासोच्छ्वासने सन्नगात्रत्वं नेत्रमीलनम् । शरीरस्य च सङ्कोचो जाड्यं चेत्येवमादयः ।।८९।। (३१) निद्रा- मद, स्वभाव, व्यायाम, निश्चिन्तता, श्रम इत्यादि के कारण मन का सुस्त होना निद्रा कहलाता है। उसमें मुख की गम्भीरता, नेत्रों का घूमना, अङ्गों का करवट बदलना, निःश्वास और उच्छवास, शरीर का लोटना, आँखों का बन्द होना, शरीर का सिकोड़ना, जड़ता इत्यादि इस प्रकार चेष्टाएँ होती हैं।।८७उ.-८९॥ मदाद् यथा (रघुवंशे ६/७५) यस्मिन् महीं शासति वाणिनीनांनिद्रा विहारार्धपथे गतानाम् । वातोऽपि नास्रंसयदंशुकानि को लम्बयेदाहरणाय हस्तम् ।।347 ।। मद से निद्रा जैसे- (रघुवंश ६/७५ में) - जिस राजा दिलीप के शासन करते समय क्रीडा-स्थान में मद पीकर सोयी स्त्रियों के वस्त्रों को वायु भी नहीं छू सकता था तो फिर दूसरा कौन पुरुष उन्हें छूने के लिए हाथ बढ़ा सकता है।।347।। स्वभावाद् यथा उत्तानामुपधाय बाहुलतिकामेकामपाङ्गाश्रयामन्यामप्यलसां निधाय विपुलामाभोगे नितम्बस्थले । नीवीं किञ्चिदिव श्लथां विदधती निःश्वासमुन्मुञ्चती तल्पोत्पीडनतिर्यगुबतकुचा निद्राति शातोदरी ।।348।। स्वभाव से निद्रा जैसे आँख के कोनों द्वारा आश्रय बनाये गये एक हाथ रूपी लता को उत्तान करके और दूसरे सुस्त (हाथ) को विशाल परिधि वाले नितम्बस्थल पर रखकर, कुछ ढीली नीवी को धारण करती हुई तथा लम्बी-लम्बी श्वॉस छोड़ती हुई और शय्या (पलंग) पर दबने के कारण तिरछे उठे
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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