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________________ [१८८] रसार्णवसुधाकरः दोषारोपण से अमर्ष जैसे (शिशुपालवध १५/४७ में) इस प्रकार भीष्म द्वारा कहे गये वचन के अर्थ (तात्पर्य) को जानने वाले शिशुपाल पक्ष के राजाओं का यह समूह अत्यधिक क्रोधित हो गया।।338।। अवमानाद् यथा (किरातार्जुनीये ११.५७) ध्वंसेत हृदयं सद्यः परिभूतस्य मे परैः । यद्यमर्षः प्रतीकारं भुजालम्बं न लम्भयेत् ।।339।। अनादर से अमर्ष जैसे (किरातार्जुनीय ११.५७ में) शत्रुओं से तिरस्कृत मेरा हृदय, क्रोध- प्रतीकार स्वरूप बाहु का अवलम्बन ग्रहण न कराता तो उसी क्षण ध्वस्त हो जाता।।339।। अथासया परसौभाग्यसम्पत्तिविद्याशौर्यादिहेतुभिः ।।८४।। गुणेऽपि दोषारोपः स्यादसूया तत्र विक्रियाः । मुखापवर्तनं गर्हाभ्रूभेदानादरादयः ।।८५।। (२९) असूया- दूसरे के सौभाग्य, सम्पत्ति, विद्या, शौर्य इत्यादि के कारण गुण में भी दोषारोपण करना असूया कहलाता है। इसमें मुख को घुमा लेना, निन्दा करना, त्यौरी चढ़ाना (भ्रूभेद), अनादर आदि विक्रियाएँ होती है।।८४उ.-८५॥ परसौभाग्येन यथा (दशरूपके उद्धृतम् १३०) मा गर्वमुद्वह कपोलतले चकास्ति कान्तस्वहस्तलिखिता मम मञ्जरीति । अन्यापि किं न सखि! भाजनमीदृशानां वैरी न चेद्भवति वेपथुरन्तरायः ।।340।। परसौभाग्य से असूया जैसे (दशरूपक में उद्धृत १३०) हे सखी इस बात का गर्व न कर कि प्रियतम के अपने हाथ से चित्रित मञ्जरी मेरे कपोलतल पर विराजमान है। अन्य स्त्री भी क्या इस प्रकार के सौभाग्य का पात्र नहीं हो सकती यदि वैरी कम्पन बाधक न हो जाये।।340।। परसम्पत्या यथा लोकोपकारिणी लक्ष्मीः सतां विमलचेतसाम् । तथापि तां विलोक्यैव दूयन्ते दुष्टचेतसः ।।341।। परसम्पत्ति से असूया जैसे(यद्यपि) निर्मल मन वाले सज्जनों की लक्ष्मी (धन) लोकोपकार करने वाली होती हैं
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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