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________________ [ १७० ] रसार्णवसुधाकरः कर दिया है, अनभ्यास हो जाने के कारण इन्द्र ने धनुर्विद्या- पाण्डित्य से सम्बन्ध छुड़ा लिया है, सतत् यज्ञ में समर्पित हव्यभाग से इन्द्र की देह में मांस बहुत बढ़ गया है, उसी में उनके सारे नयन छिप गये हैं, न जाने वह कैसे रहते हैं ? ।। 292 ।। यहाँ मेदवृद्धि के कारण इन्द्र का सौहित्य ( भोजन से तृप्ति) है। उससे उत्पन्न आलस्य 'कैसे रहते है" इस कथन से व्यञ्जित होता है। गर्भनिर्भरतया यथा आसनैकप्रियस्यास्याः सखीगात्रावलम्बिनः । गर्भालसस्य वपुषो भारोऽभूत्स्वाङ्गधारणम् ।।293।। गर्भभार से जैसे इस (नायिका) के केवल आसन से प्रेम करने वाले, सखियों के शरीर का सहारा लेने वाले तथा गर्भ (धारण) से अलसाये हुए शरीर के लिए (अपने) अङ्गों को धारण करना भी बोझ हो गया है। 129311 अथ जाड्यम् जाड्यमप्रतिपत्तिः स्यादिष्टानिष्टार्थयोः श्रुतेः । ।६२।। विरहादेश्च क्रियास्तत्रानिमेषता दृष्टेर्वा अश्रुतिः पारवश्यं च तूष्णीभावादयोऽपि च ।। ६३ ।। (१७) जड़ता - अभीष्ट और अनिष्ट अर्थ के सुनने, देखने तथा वियोग इत्यादि से उपेक्षा का भाव होना जड़ता कहलाता है। उसमें अपलक देखना, सुनायी न पड़ना, परवशता, मौन रहना इत्यादि विक्रियाएँ होती है ।। ६२उ. - ६३ ॥ इष्टश्रुतेर्यथा (किरातार्जुनीये ८.१५ ) - प्रियेऽपरा यच्छति वाचमुन्मुखी निबद्धदृष्टिः शिथिलाकुलोच्चया । समादधे नांशुकमाहितं वृथा न वेद पुष्पेषु च पाणिपल्लवम् ।।294।। अत्र प्रियवाक्यश्रवणजनितजाज्यमनिमेषत्वादिना व्यज्यते । अभीष्ट श्रवण से जड़ता जैसे (किरातार्जुनीय ८.१५ में) प्रियतम से बात (प्रेमालाप) करती हुई कोई दूसरी अप्सरा मुख ऊपर उठाकर एकटक दृष्टि से देखती ही रह गयी। उसका नीवी बंधन नीचे खिसक गया और प्रेमालाप में मुग्ध होने के कारण वह वस्त्र तक नहीं सुधार सकी अर्थात् नग्न हो गई। फूलों पर उसका पल्लव के समान कोमल हाथ भी नहीं पड़ रहा था । । 294 1 1
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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