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________________ द्वितीयो विलासः देखना, अङ्गभङ्ग इत्यादि अनुभाव होते हैं ।। २३ - २५॥ ऐश्वर्यमाज्ञासिद्धि । तेन यथा ( बालरामायणे ५/२२) - - राहो तर्जय भास्वरं वरुण हे निर्वाप्यतां पावकः सर्वे वारिमुचः समेत्य कुरुत ग्रीष्मस्य दर्पच्छिदाम् । प्रालेयाचल चन्द्र दुग्धजलधे हेमन्तमन्दाकिनी द्राग्देवस्य गृहानपेत भवतां सेवाक्षणो वर्तते ।1253।। ऐश्वर्य का अर्थ है- आज्ञा का पालन होना । [ १५१ ] उस आज्ञा पालन से गर्व जैसे (बालरामायण ५ / २२ मे ) - राहु सूर्य को डाट दो, हे वरुण अग्नि को बुझा दो, हे समस्त बादलो! तुम इकट्ठे होकर ग्रीष्म का दर्प भङ्ग कर दो, हे हिमालय ! हे चन्द्र ! हे क्षीरसागर! हे हेमन्त ! हे मन्दाकिनी! आप सभी महाराज रावण के घर आइए इस समय सेवा का अवसर मिला है। 1253।। यथा वा (बालरामायणे १.३१) - बहने! निह्नोतुमर्चिः परिचिनु पुरतः सिञ्चतो वारिवाहान् हेमन्तस्यान्तिके स्याः प्रथयति दवथुं येन ते ग्रीष्म नोष्मा । मार्त्तण्डाश्चण्डतापप्रशमनविषये धत्त सन्ध्या जलाद्री देवोऽन्यत् प्रतापं त्रिभुवनविजयी मृष्यते श्रीदशास्यः ।।254।। अथवा जैसे (बालरामायण १/३१ में ) -- हे अग्नि ! अपनी शिखाओं को छिपाने के लिए आगे से वर्षा करते हुए मेघों का सङ्ग्रह कर लो, हे ग्रीष्म ! तुम भी हेमन्त के समीप हो जाओ जिससे तुम्हारी ऊष्मा से ताप न उत्पन्न हो, हे आदित्यों! अपने भीषण ताप को शान्त करने के लिए जलार्द्र प्रभा को धारण कर लो क्योंकि त्रिभुवन विजयी महाराज रावण दूसरे के प्रताप को सहन नहीं करते । ! 254 ।। रूपतारुण्याभ्यां यथा वाटीषु वाटीषु विलासिनीनां चरन् युवा चारुतयातिदृप्तः । तृणाय नामन्यत् पुष्पचापं करेण लीलाकलितारविन्दः ।।255।। रूपता और तारुण्य से गर्व जैसे रमणियों के उपवनों में रमणीयता पूर्वक विचरण करते हुए मदोन्मत्त युवक विनोद में हाथ से कमल को पकड़े हुए अत एव कामदेव को भी तृण के समान समझा । 1255।। कुलेन यथा (प्रबोधचन्द्रोदये २/७ ) - गौडं राष्ट्रमनुत्तमं निरुपमा तत्रापि राधापुरी
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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