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________________ यथा द्वितीयो विलासः निष्ठीवन्त्यो मुखरितमुखं गौरवात् कन्धरायाः प्रायो हिक्काविकलविकलं वाक्यमर्धं गृणन्त्यः । नैवापेक्षां गलितवसने नाप्युपेक्षामयन्ते पायं पायं बहुविधमधून्येकवीथ्या कुमार्यः ।। 249 ।। जैसे - कन्धों की गुरुता से ( बार - बार ) थूकने वाली (वेश्या) का मुख मुखरित (उटपटाँग बोलने वाला) होता है। प्रायः हिचकी के कारण व्याकुल (वेश्या) का वाक्य (कथन) अधूरा रह जाता है। इस प्रकार अनेक प्रकार की मदिराओं को पी-पी कर वेश्या - कुमारियाँ न तो (अङ्गों से) खिसके हुए वस्त्र के प्रति अपेक्षा करती हैं और न तो उपेक्षा ही करती हैं । । 249 ।। तरुणस्तूत्तमादीनां मध्यमो मध्यनीचयोः । अपकृष्टतु नीचानां तत्तन्मदविवर्धने ।। २०।। उत्तम इत्यादि (नायकों) में तरुण, मध्यम और नीच (नायक) में मध्यम, तथा नीच ( नायकों) में अपकृष्ट (मद) उनके मद को बढ़ाने में कारण होता है॥ २०॥ [ १४९ ] उत्तमप्रकृतिः शेते मध्यो हसति गायति । अधमप्रकृतिर्ग्राम्यं परुषं वक्ति रोदिति ।। २१ ।। उत्तमादि पुरुष भेद से मद का विभाजन- उत्तम प्रकृति वाला नायक सो जाता है, मध्यम प्रकृति वाला हँसता और गाता है और नीच प्रकृति वाला नायक अशिष्ट कठोर वचन बोलता और रोता है । । २१ ॥ तरुणस्य मदवृद्धि (कुमारसम्भवे ८/७९)परिवर्तितह्नियोर्नेष्यतोः तत्क्षणं शयनमिद्धरागयोः । सा बभूव वशवर्तिनी तयोः प्रेयसः सुवदना मदनस्य च ।।250 ।। उत्तम की मदवृद्धि जैसे (कुमारसम्भव ८/७९ में) - मदिरा पीते ही सुमुखी पार्वती की सारी लज्जा जाती रही, काम का वेग भड़क उठा और वह शंकर जी की गोद में लुढ़क गयी। उन्हें इसी स्थिति में उठाकर शंकर जी शयनकक्ष में ले गये। इस प्रकार वह एक साथ ही मदिरा तथा शंकर जी के वशीभूत हो गयीं । । 250 ।। मध्यमस्य मदवृद्धिर्यथा विनापि हेतुं विकटं जहास पदेषु चस्खाल समेऽपि मार्गे । विघूर्णमानः मध्यम की मदवृद्धि जैसे (मदिरा पीकर) अकारण ही अट्टहास करने लगा, समतल मार्ग में भी पैर लड़खड़ाने स मदातिरेकादाकाशमालम्बनमाललम्बे 11251।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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