SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ विषाद: द्वितीयो विलासः [ १४१ ] I प्रारब्धकार्यानिर्वाहादिष्टानाप्तेर्विपत्तितः अपराधपरिज्ञानादनुतापस्तु यो भवेत् ॥ ८ ॥ विषादः स त्रिधा ज्येष्ठमध्यनीचसमाश्रयात् । सहायान्वेषणोपायचिन्ताद्या उत्तमे स्मृताः ।। ९ ।। अनुत्साहश्च वैचित्त्यमित्याद्या मध्यमे मताः । अधमस्यानुभावाः स्युर्वैवर्ण्यमवलोकनम् ।।१०।। रोदनश्वसितध्यानमुखगोपादयोऽपि च । (२) विषाद- प्रारम्भ किये हुए कार्य के निर्वाह न होने से, अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति न होने से, विपत्ति से और (किये हुए) अपराध के ज्ञान से जो पश्चात्ताप होता है, वह विषाद कहलाता है। विषाद के प्रकार- वह उत्तम (ज्येष्ठ) मध्यम तथा नीच व्यक्ति के आश्रित होने से तीन प्रकार का होता है। उत्तम विषाद के अनुभाव- उत्तम व्यक्ति (के आश्रित विषाद में) सहायक को खोजने का उपाय, चिन्ता आदि, अनुभाव कहे गये हैं। मध्यम विषाद के अनुभाव - मध्यम में अनुत्साह, मानसिक विकलता इत्यादि अनुभाव होते हैं। अधम विषाद के अनुभाव - अधम में विवर्णता, अवलोकन, रोदन, नि:श्वास, ध्यान, मुख को छिपाना इत्यादि अनुभाव होते है ।।८ - ११ पू. ॥ प्रारब्धकार्यानिर्वाहाद् यथा ( मालतीमाधवे १.३६ ) - वारं वारं तिरयति दृशावुद्गतौ बाष्पपूरस्तत्सङ्कल्पोपहितजडिम स्तम्भमभ्येति गात्रम् । सद्यः स्विद्यन्नयमविरतोत्कम्पलोलाङ्गुलीकः पाणिलेखाविधिषु नितरां वर्तते किं करोमि ।।231।। अत्र प्रस्तुत - चित्रलेखानिवार्हान्माधवस्य किं करोमीति वागारम्भसूचितया तद्दर्शनोपायचिन्तया विषादो व्यज्यते । प्रारम्भ कार्य के निर्वाह न होने से विषाद जैसे (मालतीमाधव १.३६ में) - (माधव मकरन्द से कहता है-) उत्पन्न अश्रुप्रवाह नेत्रों को बार-बार आवृत्त कर देता है । प्रिया (मालती) की चिन्ता से (उसके चित्र लिखने वाले) कार्य में असामर्थ्य को प्राप्त करने वाला शरीर स्तब्ध हो जाता है। यह हाथ चित्र लिखने की क्रियाओं में तत्क्षण पसीना आने और निरन्तर
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy