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________________ प्रथमो विलासः जैसे शिङ्गभूपाल का ही सखियों के साथ बातचीत करते समय दोनों कानों के लिए अकेले ही रसायन स्वरूप प्रियतम की कही गयी बातों को सुनकर तन्वी (प्रियतमा) द्वारा चञ्चल कङ्गनों की झनकार के कारण मनोहर ध्वनि (की गयी), भुजा रूपी लताएँ हिलायी गयीं और अङ्गों में मनोहर भङ्गिमा प्रदर्शित की गयी।।119।। अथ कुट्टमितम् केशाधरादिग्रहणे . मोदमानेऽपि मानसे । दुःखितेव बहिः कुप्येद् यत्र कुट्टमितं हि तत् ।। २०५।। ७. कुट्टमित- बालों, होठों इत्यादि के पकड़ने पर (नायिका का) भीतर से मन प्रसन्न होने पर भी दुःखिता के समान बाहर से क्रोधित होना कुट्टमित कहलाता है।।२०५।। यथा पाणिपल्लवविधूननमन्तस्सीत्कृतानि नयनार्धनिमेषाः । योषितां रहसि गद्गदवाचामस्त्रतामुपययुर्मदनस्य ।।120।। जैसे रमणियों का एकान्त में (सुरतकाल में) हाथ रूपी पल्लवों का हिलाना. (चलाना), भीतर से सीत्कार करना, नेत्रों का आधा बन्द कर लेना और गद्गद् वाणी (नायक के लिए) कामदेव का अस्त्र हो गया।।120।। अत्र रहसीति सामान्यसूचितानां केशाधरग्रहणादीनां कार्यभूतैः पाणिपल्लवविधूननसीत्कृतादिभिर्बहिरेव कोपस्य प्रतीयमानत्वात् कुट्टमितम् । यहाँ 'एकान्त में इससे सूचित बाल, होठ इत्यादि के पकड़ने से हाथरूपी हाथों का धूनना, सीत्कार इत्यादि द्वारा बाहर से (दिखावे के लिए) कोप की प्रतीति होने से कुट्टमित है। अथ विब्वोकम् इष्टेऽप्यनादरो गर्वामानाद् विब्चोक ईरितः । ८. विब्वोक- गर्व अथवा मान के कारण इष्ट (नायक) के प्रति (नायिका द्वारा) किया गया अनादर विब्वोक कहलाता है।।२०६पू.॥ . गर्वाद् यथा पुंसानुनीता शतसामवादैहालां निरीहैव चुचुम्ब काचित् । अर्थानभीष्टानपि वामशीलाः स्त्रियः परार्थानिव कल्पयन्ति ।।121 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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