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________________ प्रथमो विलासः ९. धैर्यचित्त की स्थिर उन्नति धैर्य कहलाती है।।१९८पू.।। यथा (कुमारसम्भवे ६.१) अथ विश्वात्मने गौरी सन्दिदेश मिथः सखीम् । दाता मे भूभृतां नाथः प्रमाणीक्रियतामिति ।।111।। जैसे (कुमारसम्भव ६.१ में) इसके पश्चात् पार्वती ने अपनी सखी द्वारा एकान्त में विश्वात्मा शङ्कर जी से कहलाया कि मेरे पिता पर्वतराज हिमालय ही मुझे आप को दे सकते हैं अतः इसके लिए उन्हीं से अनुरोध कीजिए।।111।। अथौदार्यम्__ औदार्य विनयं प्राहुः सर्वास्वस्थानुगं बुधा ।।१९८।। १०. औदार्य- सभी अवस्थाओं होने वाला विनय औदार्य कहलाता है।।१९८उ.॥ यथा (रघुवंशे १४.६२) कल्याणबुद्धेरथवा तवायं न कामचारो मयि शङ्कनीयः । ममैव जन्मान्तरपातकानां विपाकविस्फूर्जथुरप्रसहयः ।।112।। अत्र अनपराधेऽपि निष्कासयतो रामस्यानुपालम्भात् सीताया औदार्य प्रतीयते। सर्वावस्थासमत्वाविदितेङ्गिताकारत्वरूपयोर्लक्षयोः चित्तधैर्य एवान्तर्भूतत्वाद् भोजराजलक्षितौ स्थैर्यगाम्भीर्यरूपावन्यौ द्वौ चित्तारम्भौ चास्मदुक्ते धैर्य एवान्तर्भूताविति दशैव चित्तारम्भाः। जैसे (रघुवंश १४.६२ में) अथवा आप तो सबकी भलाई करने वाले हैं आप अपने मन से मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते, यह सब मेरे पूर्वजन्म के पापों का ही फल है जो वज्रपात के समान असहय है।।112।। ___ यहाँ सीता के निरपराध होने पर भी निकालते हुए राम का प्रत्यक्ष ज्ञान न होने से सीता की उदारता प्रतीत होती है। सभी अवस्थाओं में समान रूप से और अज्ञात सङ्केतित आकारता रूप लक्षणों का चित्तधैर्य में ही अन्तर्भाव होने के कारण भोजराज द्वारा लक्षित धैर्य और गाम्भीर्य रूपी दो अन्य चित्तज अनुभावों का धैर्य में ही अन्तर्भाव हो जाता है, अत: दस ही चित्तज अनुभाव हैं। अथ गात्रारम्भाः लीला विलासो विच्छित्तिविभ्रमः किलकिञ्चितम् । मोट्टायितं कुट्टमितं विब्बोको ललितं तथा ।।१९९।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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