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( ३२ ) गोपथ के उपयुक्त दो अवतरणों में से पहले में अन्न को सर्व भूतों का श्रात्मा बताया, तब दूसरे प्रतीक मैं अन्न को ही यज्ञ का मूल बताया है। ___ "त्रयाणां भक्ष्याणामेकमाहरिष्यन्ति सोमं वा दधि वापो वा स यदि सोमं ब्राह्मणानां स भक्ष्यः ब्राह्मणांस्तेन भक्ष्येण जिन्विध्यसि"
"अथ यदि दधि वैश्यानां स भक्ष्यो वैश्यान् तेन भक्ष्येण जिन्विष्यसि" - "साथ यद्यपःशूद्राणां स भक्ष्यः शूद्रांस्तेन भक्ष्येण जिन्विष्यसि"
- स. पं० अ ४, ५० १४ पृ० २ ऐतरेय ब्राह्मण के उपयुक्त अवतरण में ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र का भक्ष्य क्रमशः सोम, दधि, और जल बताया है। .... क्षत्रिय के भक्ष्य का उल्लेख नहीं किया, यही नहीं परन्तु इसी ब्राह्मण में आगे जाकर यह लिखा है, कि क्षत्रिय राजा के हाथ का हव्य देवता ग्रहण नहीं करते, इससे ध्वनित होता है कि उस समय में क्षत्रियों में अन्न के अतिरिक्त दूसरे प्राणि जात खाद्य भी हो गये होंगे। - उपर्युक्त वेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों के अतिरिक्त शांख्यायान ब्राह्मण (११।८ ) शतपश ब्राह्मण (१४।६।३।२२।) कात्यायन श्रौतसूत्र ( २२।११।१ ) अथर्वदेद के कौशिक सूत्र आदि वैदिक प्रन्यों में भी धान्य शब्द का प्रयोग देखने में आता है।
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