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--- २८ ) · ऋक् संहिता में धान्य शब्द का उल्लेख"यस्ते सूनो सहसो गीभिरुक्थैः यज्ञैर्मयो निशितं वैद्यान विश्वं स देव प्रतिवार. मन धत्ते धान्यं प्यते व सव्य ।।
(ऋक् संहिता ६३१३४ ) अर्थात् हे वलके पुत्र तुम्हारा क्षीणता जो मर्त्य (मनुष्य) स्तुति और यज्ञ द्वारा वेदी (यज्ञभूमि पर पाते हैं) हे द्योतमान ! अमि ! वे समस्त धान्य प्रतिधारण करते और धन सम्पन्न होते है।
कृष्ण यजुर्वेद में शुक्ल और कृष्ण दो प्रकार के ब्रीहि का का उल्लेख है यथा"श्रीहीनाहरेच्छुकांश्चकृष्णांच"
(तैत्तरीयसंहिता ।२।३।११३१) अर्थात्-शुक्ल और कृष्ण दो प्रकार के ब्रीहि को इकठ्ठा करो।
ब्रीहि शब्द का उल्लेख अथर्ववेद के पूर्ववर्ती तैत्तरीय और वाजसनेय संहिता में मिलता है । यथा
"यवं प्रीष्मायौषधीवर्षाभ्यो । श्रीहीन शरदे माषतिलौ हेमन्त शिशिराभ्याम्"
। (तैत्तरीय संहिता ॥२।१०।२) जीहिश्च मे यवाश्च मे,माषाश्च मे यक्षेन कल्पन्ताम्"।
। ( वाजसनेय संहिता १८११२१ ) . अर्थात्-प्रीष्म ऋतु से यव जाति के धान्यों का, वर्षा से