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के आने पर कुलकर उन मनुष्यों को कल्पवृक्षादिक का मोह छोड़ कर जंगली धान्यों तथा कन्द मूनों का उपयोग करके अपना निर्वाह करने का मार्ग बताता है । आवश्यक नियुक्ति तथा मूलभाष्य में इस वस्तु का निरूपण नीचे की गाथाओं में उपलब्ध होता है।
"श्रासी म कन्दहारा, मूलाहारा य पत्तहारा य । पुष्फ फल भोइणोऽवि अ, जइया किर कुलगरो उसमो॥शा
मासीत्र इक्खु भोई, इक्खामा तेख खत्तिया हुति । - सलसत्तरसंधएणं, आमं भोमं च भुजीया ॥६॥ .. अथात्-जिस समय भारत भूमि में ऋषभ नामक कुलकर थे उस समय के मनुष्य कन्दाहारी, मूलाहारी, पत्राहारी व पुष्पकल भोजी थे। उनमें जो इतु भोजी मनुष्य थे, इक्ष्वाकु क्षत्रिय कहलाये। ये सभी शण पर्यन्त सत्रह प्रकार के कच्चे धान्यों का भी थोड़ा-थोड़ा भोजन करने लगे।
.. "प्रासीम पाणिधंसी तिम्मिन तन्दुल पवालपुड भोई।
हत्य तल पुडाहारा, जया किर हुलकरो, उसहो ॥८॥ ...अमशिस्सय उडालं, दुमघंसा दड्ड भी परि कहणं ।
पसे सुं परिका , गिबहरह पानं च तो कुलह ।. पक्लेव दहल मोसहि कहलं निगमय हत्यि सीसम्मि । परणारम्भ पवित्ती, ताहे काली अतेमणुत्रा ॥१०॥ (म.भा.)
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