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( १६ ) लेना पड़ा। वे किसी भी अपराधी मनुष्य को धिक्कारते, तब वह अपने को दण्डित समझता था।
(अन्तिम कुलकर नाभि ने अपने पिछले जीवन में कुलकर का कार्यभार अपने पुत्र ऋषभ पर छोड़ दिया था। ऋषभ नाभि से विशेष ज्ञानी थे, अतः उन्होंने मनुष्य समाज की विशेष व्यवस्था के लिए ) घोड़े, हाथी, गाय आदि को पकड़वा कर राज्याङ्गों का संग्रह किया और इस प्रकार उपयोगी पशुओं को पकड़वा कर चतुर्विध राज्योपयोगी अङ्गों का संग्रह किया । इसी प्रकार मनुष्यों को भी चार वर्गी में वाँट कर उग्र, भोग, राजन्य, और क्षत्रिय इन नामों से सम्बोधित किया । उसों को उन्हों ने नगर रक्षकों का काम सोंपा, भोगों को अपना गुरु स्थानीय और राज्यों को मित्र स्थानीय माना । शेष जो रहे वे क्षत्रिय नाम से प्रसिद्ध हुए। - __ऋषभ कुलकर ने अपने पुत्र भरत आदि को पुरुषों योग्य हास प्रति कलाओं का शिक्षण दिया, जिनका नाम निर्देश नीचे के अनुसार है।
"लेख (लिपि ) १, गणित २, रूप ३, नाट्य ४, गोत ५, मादन ६, स्वर गत ७, पुष्करगत ८, समताल ६, द्यूत १०, अनवार ११, पोक्खच १२, अष्टापद १३, दग मृत्तिका १४, मामविधि १५, पानविधि १६, वस्त्रविधिः १७, शयनविधि १८, भार्या १६, अहेलिका २०, मागधिका २१, गाथा २२, भोक २३, गंधयुक्ति मधुसित २५, आभरण विधि २, तरुणीप्रतिकर्च २७, स्वीलाRE, पुरुष वाम २६, अश्व लक्षण ३०, गज लक्षण ३१,