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खट्टा, विषैला और तेजाब-सा तेज होगा । उससे निर्वाह न होकर "विविध-व्याधि-वेदनाओं की उत्पत्ति होगी ।
उन मेघों के जल से भारत के ग्रामों और नगरों के मनुष्यों और जानवरों का, आकाश में उड़ने वाले पक्षियों का, ग्राम्य तथा स्थावर वस स्थावर प्राणियों का, और वर्तमान वनस्पतियों का विनाश हो जायगा । एक वैताढ्य पर्वत को छोड़ कर सभी पहाड़ महाड़ियां बकापातों से खण्ड विखण्ड हो जायेंगी। गंगा और सिन्धु को छोड़ कर शेष नदी, नाले, सरोवर, आदि ऊँचे मीचे स्थल समतल हो जायेंगे ।
गौतम - भगवन् ! तब भारतभूमि की क्या दशा होगी ?
महावीर - गौतम ! उस समय भारतवर्ष की भूमि अंगारस्वरूप, मुमुर स्वरूप, भस्मस्वरूप, तपे हुए तवे और जलती हुई श्राग-सी-गर्म, मरुस्थली की सी वालुका मयी, और छिछली झील सी काई ( शैवाल ) कीचड़ से दुगम होगी।
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गौतम - भगवन् ! तत्कालीन भारतवर्ष का मनुष्य-समाज कैसा होगा ?
महावीर - गौतम ! तत्कालीन भारतवर्ष के मनुष्यों की हुशा
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बड़ी दयनीय होगी । विरूप, विवर्ण, दुर्गन्ध, दुःस्पर्श और विरस शरीर वाले होने से वे दिशेनीय होंगे। वे दीनस्वर, इमार, अनिलस्वर, अनादेय बचन, काफ्ट पटु, केशप्रिय, हिंसक, वैरशील,
विश्वसीय निर्लज्ज, कार्य र र