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________________ मिलक्खु रजनं रच, गरहंता सकं धजं । ...... तिथियानं धज केचि, धारे संत्यवदातकं ॥१६॥ अगारवो. च कासावे, तदा ते संभविस्सति । पटिसंखाच कासावे, भिक्खूनं न भविस्सति ॥६६६॥ - अर्थः- "रक्त" यह म्लेच्छों का प्रिय रङ्ग है यह कहते हुए कई अपने काषाय वस्त्र की निन्दा करेंगे और अन्य तीर्थकों का श्वेतवस्त्र धारण करेंगे। उस समय भिक्षुओं का काषाय वस्त्र पर अनादर होगा और भिक्षुओं को काषाय वर्ण के वस्त्र पर प्रति संख्या ( आदर ) नहीं रहेगा। भिक्खू च भिक्खूनियो च, दुइचित्ता अनादरा । तदानीं मेत्तचित्तानं, निग्गरिहस्संति नागते ॥६७४॥ अर्थः-भविष्य में दृष्टचित्त भिक्षु और भिक्षुणियां अनादर से मैत्र चित्त वाले भिनु भिक्षुणियों का पराभव करेंगे। काषाय वस्त्रधारी भिक्षुओं के प्रति धम्मपदकार के प्रहारअनिकसावो कासावं, यो वत्थं परिदहेस्सति । अपेतो. .दमसच्चेन, न सो कासाव मरहति ॥१॥१०३ कासाव कएठा वहवो, पापधम्मा असञ्जता । पापा पापेहि कम्मेहि, निरयं उपज्जिरे ॥२॥ सेय्यो अयो गुलो भुत्तो, तत्तों अग्गिसिखूपमो। यञ्चे भुञ्जय्य दुस्सीलो, रपिंड ते असजतो ॥३॥ . कुसो यथा . दुग्गहितो, हत्थ मेवानुकंतति ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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