________________
( ४६० )
दुर्गति कारक कष्ट कार्य किये फिर भी में आया ।
इस प्रकार के बहुत से संसार के प्रवाह में बहने लगा तब बुद्ध
के शरण
शरण गमन का प्रभाव देखो और धर्म की सुधर्मता को देखो तीनों ही विद्यायें पाली और बुद्ध के शासन का पालन किया ।
ऊपर के वर्णन में जम्बुक नामक स्थविर प्रथम जैन श्रमण था और पचपन वर्ष तक अनेक कड़ी तपस्यायें की थीं, फिर भी सफलता न मिलने पर वह बुद्ध के पास गया और बुद्ध का शरण लेते ही उसे तीन विद्या प्राप्त हो गई थीं। इस सम्बन्ध में हम कोई टीका टिप्पणी नहीं करते। अनेक बौद्ध भिक्षु बौद्ध सम्प्रदाय से निकल कर निर्मन्थ जैन श्रमण बने थे, वैसे जम्बुक भी जैन सम्प्रदाय से निकल कर बौद्ध भिक्षु बना होतो आश्चर्य नहीं है, परन्तु उसके मुख से निर्मन्थ सम्प्रदाय में रह कर किये हुए कष्टों के वर्णन में शुष्क गूथ ( सूखी विष्ठा ) खाने की बात कहलाई है, वह सफेद झूठ है क्योंकि ऐसी वीभत्स तपस्या न निर्मन्थों में थी न जैन सूत्रों में ही इसका कहीं सूचन मिलता है ।
इसी प्रकार थेरी गाथा में भद्दा थेरी के मुख से नीचे की गाथायें कहलायी हैं
लून केसी पङ्कधारी, एक साठीं पुरे चरिं । अवज्जे वज्ज मतिनी, वज्जे चावज्ज दासिनी ॥ १०७ ॥ दिवा विहारा निक्खम्म, गिज्झ कूटम्हि पव्वते । असं विरजं बुद्धं, भिक्खु संघ पुरखतम् ॥ १०८॥