________________
.
.
( ४७६ .) अर्थ-कश्यप के आमगन्ध सम्बन्धी आक्षेपों का उत्तर देते हुए बुद्ध ने कहा हे काश्यप ! जो अच्छी तरह बनाया हुआ और अच्छी तरह पकाया हुआ शाली धान्य का स्निग्ध भोजन दूसरों से दिया हुआ खाते हुए तुम स्वयं श्रामगन्ध भोजन करते हो । न आमगंधो मम कप्पतीति, इच्चेवत्वं श्रासति ब्रह्मवन्धु । सालीनमन्त्र परिभुञ्जमानो, सकुन्तमंसेहि' सुसंखतेहि । पुच्छामि तं कस्सप एतमत्थं, कथत्पकारो तब आमगंधो ॥३॥ ____ अर्थ-हे काश्यप ! मुझे आमगन्ध नहीं खपता यह कहते हुए तुम सुसंस्कृत पक्षी मांस से मिश्रित किया हुआ शाली का भोजन करते हो, तब मैं पूछता हूँ हे ब्रह्मबन्धु तुम्हारा आमगन्ध किस प्रकार का है। पाणातिपातोवधच्छेदबन्धनं, थेज मुसावादो निकति वञ्चनानिच अज्झन कुत्त परदार सेवना, एमामगंधो नहि मंस भोजन।।४ .. .
. (सुत्त निपात पृ० २५) - अर्थ-प्राणाति पात, वध, छेदन, बन्धन, चौर्य, मृषावाद, माया, ठगाई, अभिचार, परस्त्री गमन यह आमगन्ध है न कि मांस भोजन।
ranerwirrrrrrrrrrrrraiminairiraramremarrrrrrrrrrrr१-वैदिक धर्मशास्त्रों में अतिथि के लिये मांसौदन तैयार करने का निर्देश मिलता है, इस बात को ध्यान में रखकर बुद्ध ने पूरण कश्यप पर शकुन्त मांस से संस्कृत मोदन खाने का मिथ्या भाक्षेप किया है, क्योंकि वैदिक धर्म सूत्रों में प्रतिथि संन्यासी को नहीं, किन्तु गृहस्थ ब्राह्मण को ही माना है। संन्यासी मांसोदन नहीं, निरामिष भोजन लेते थे।