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(४७३ ) उद्दिष्टकृत और आमगन्ध बुद्ध के समय में उनके भोजन के सम्बन्ध में टीका टिप्पणियां होती ही रहती थी, क्योंकि समकालीन अन्य सम्प्रदायों के श्रमणों की भिक्षाचर्या में उरिष्टकृत ( उनके लिये बनाया गया ) भोजन तथा मांस लेने का कड़ा प्रतिबन्ध था, तब बुद्ध के भिक्षुओं में इन दोनों बातों की छूट थी । वे निमन्त्रण को स्वीकार कर उनके लिये बनाया गया भोजन निमन्त्रण दाता के घर जाकर खा लेते थे। उनके लिये बनाया हुश्रा भोजन वे अपने स्थान पर भी ले आते थे और मांस मत्स्य भी मितान में ग्रहण कर लेते थे। इन दो प्रकार के भोजनों में से भगवान महावीर के अनुयायी निर्मन्थ श्रमण दोनों का विरोध करते थे। तब पूर्ण काश्यप आदि अन्य सम्प्रदायों के नेता आमगन्ध का खास विरोध करते थे. क्योंकि वैदिक सम्प्रदाय के सन्न्यासियों को उद्दिष्टकृत सर्वथा वर्जित नहीं था, जब कि आमगन्ध उनके लिये सर्वथा हेय था।
बौद्ध भिक्षुओं के आमन्त्रित भोजन पर जैन श्रमण कैसे कठोर वाक्य प्रहार करते थे, उसका एक उद्धरण यहां देते हैं
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तेव बीओदगं चैव, तपादिसाय जं कडं। भोच्चा झाणं झियायंति, अखेयना समाहिया ॥२६॥ जहा ढंकाय कंकाय, कुललाकातु कासिही। मच्छेससं मिझायंति, भायं ते कलुसाधमं ॥२७॥