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(४६८ ) अहं सुमनसा मनुस्स सुमन मकुलानि दन्तवएपनि अहमदासिं। भिक्खुनो पिण्डाय चरन्तस्स एसिकानं उएणतस्मि नगरे वरे पुराणकते रम्मे ॥२६॥..... ___ अर्थ-मैंने अन्धक वृन्द ग्राम में आदित्यों के बन्धु भगवान्
बुद्ध को कोलपाफ का दान दिया, और ऋजुभूत में प्रसन्न चित्त से तेल से वघारा हुबा पीपर लहसुन और लामञ्जक से मिभित काधिक प्रदान किया। . ..
मैंने एसिको के पेएणकत नामक रम्य नगर में मिक्षा भ्रमण करते हुएं मितुं को इन्दीवर कमल में पुष्पों का गुच्छा प्रदान किया। ___ एसिकों के पेएणकत रम्य नगर में भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए भिक्षु को मैंने तालाब के जल में उत्पन्न हुई नीले पत्रों वाली श्वेतमूलिका का दान दिया।
एसिकों के पेएणवत रम्य नगर में मिक्षा भ्रमण करते हुए भितु को मैं ने प्रसन्न मन से दातुनों का दान दिया। ...ऊपर के पद्यों में लहसुन मिश्रित काञ्जिक बुद्ध.को देने का निर्देश मिलता है, इससे जाना जाता है कि नैन वैदिक श्रमणों की तरह बुद्ध और उनके श्रमण लहसुन प्याज आदि खाने में दोष नहीं गिनते होंगे। - "मज्झिम निकाय" में बौद्ध भिक्षु को पुष्पमाला गन्ध का त्यागी बताया है, तब "विमान पत्यु" में भितु को इन्दीघर आदि
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