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२. अदत्तादान को छोड वह अदत्तादान से प्रति विरत होता है । दिया हुआ लेने वाला, दिये हुए की इच्छा रखने वाला, स्तन्यभाव से पवित्र बने हुए आत्मा से वह विचरता है ।
३. ब्रह्मचर्य (मैथुन) को छोड कर वह ब्रह्मचारी बनता है । वस्ती से दूर विचरने वाला, मैथुन ग्राम्यधर्म से प्रतिविरत होता है ।
४. मृषावाद को छोड़कर मृषावाद से प्रतिविरत होता है । वह सत्यवादी, सत्यप्रतिज्ञ, स्थैर्यवान् और लोक में विश्वास पात्र तथा विसंवादी बनता है ।
५. पिशुनतापूर्ण वाणी को छोडकर वह पैशुन्य से प्रतिविरत होता है। यहां सुनकर उधर नहीं कहे उनमें फूट डालने के लिए । भिन्नों में सन्धि कराने वाला, मेल जोल वालों को प्रोत्साहन देने बाला, सर्वत्र सुखी, सर्वत्र प्रसन्न, सर्वत्र आनन्द में रहने वाला और सर्व कार्य साधक भाषा बोलने वाला होता है ।
६. कठोर भाषा को छोड़कर परुष भाषा से प्रतिविरत होता है । जो भाषा यथार्थ कानों को सुख देने वाली, प्रेम उत्पन्न करने बाली, हृदय को आनन्दित करने वाली, प्रौढा, वह लोक प्रय बहुजनों का मनरञ्जन करने वाली इस प्रकार की भाषा को वह बोलता है ।
७. निरर्थक प्रलाप छोड़ निरर्थक प्रलाप से प्रतिविरत होता है । कालवादी, भूतवादी, अर्थवादी, धर्मवादी, विनयबादी,