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धर्मप्रचार में अशोक का सहकार
इस बौद्ध संघ सम्मेलन में बौद्ध धार्मिक साहित्य को व्यवस्थित कर के अन्तिम रूप दिया गया और साथ में यह भी निर्णय किया गया कि भारत वर्ष के अतिरिक्त विदेशों में भी उपदेशक भिक्षुओं को भेजकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया जाय । इस योजना के अनुसार भारत के निकटवर्ती सिंहल द्वीप, ब्रह्मदेश और पश्चिम के निकट बर्ती देशों में उपदेशक भिक्षुओं की टुकड़ियां भेजी गयीं।
सिंहलद्वीप में अशोक का पुत्र महेन्द्रकुमार और पुत्री उत्तरा जो भिक्षु भिक्षुणी बने हुए थे कुछ सहकारी भिक्षु भिक्षुणियों के साथ भेजे गये । इन उपदेशकों का सिंहल द्वीप की जनता और खास कर के लङ्का के राजा पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा, सैकड़ों मनुष्य बुद्ध धर्म के अनुयायी बने । इस सफलता से प्रोत्साहित हो कर लङ्का में भारत से बोधिवृक्ष की शाखा मंगवा कर वहां लगवाने का निश्चय किया, और इसके लिये भारत के महाराजा अशोक को बोधिवृक्ष की शाखा भेजने के लिये प्रार्थना की गई। अशोक ने सहर्ष सिंहल द्वीपियों की प्रार्थना स्वीकार कर बड़े शाही ठाठ से बोधिवृक्ष की शाखा वहां पहुंचाई। इस प्रकार सिंहल द्वीप में अशोक के समय में ही बौद्ध धर्म की नींव मजबूत हो गई थी। ब्रह्म, श्याम आदि देशों में उपदेशक भिक्षु प्रचार का काम बड़ी लगन से कर रहे थे, और हजारों ही नहीं लाखों मनुष्य उनके अनुयायी बनते जाते थे ।