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धान्यं वृक्ष लतां यस्तु, स्थावरं जङ्गमं तथा। उत्पाटयति मूढात्मा, अवीची नरकं व्रजेत् ।। अकामादपि हिंसेत, पशून् मृगादिकान् यतिः । कृच्छातिकृच्छौ कुर्वीत, चान्द्रायणमथाऽपि वा ॥ . अर्थ-गिरगिट, क्षीरगल, मेंढक, छिपकली, और मुर्गा आदि किसी भी एक प्राणी की हिंसा में प्रायश्चित्त स्वरूप दश दिन तक संन्यासी आधा भोजन करे।
विल्ली, चूहा, सांप, बड़ा मत्स्य, पक्षी, और नकुल प्राणियों में से किसी की अपने हाथ से हत्या हो जाने पर चान्द्रायणव्रत द्वारा प्रायश्चित्त करे।
छोटी कीटिका की हत्या में तीन तीन, और खटमल, मच्छर इनकी हिंसा में पांच पांच प्राणायाम करके प्रायश्चित्त करे ।
मूल, अंकुर, पत्र, पुष्प, फल, और अन्य सभी स्थावर प्राणियों के उपमर्दन में प्रायश्चित्त स्वरूप तीन तीन प्राणायाम करे
धान्य, वृक्ष, वल्ली, तथा स्थावर, जङ्गम, अन्य प्राणियों को जो मूढ संन्यासी उखाड फेंकता है वह मर कर अवीची नरक में जाता है। . ___ जो यति बिना इच्छा के भी मृग आदि पशुओं की हिंसा .. करता है, वह कृच्छ तथा अतिकृच्छ व्रत द्वारा अथवा चान्द्रा... यण व्रत करके हिंसा का प्रायश्चित्त करे।