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मानव भोज्य मीमांसा
पंचम अध्याय
( ५ )
अनारम्भी वैदिक परिव्राजक त्यक्तकर्मकलापेन विवर्णवस्त्रधारिणा । परिव्राजा जितं संग-वारिया वनचारिणा ॥
अर्थः- सर्व कर्मों का त्याग करके वित्र वस्त्रधारी, और ग्राम - नगरों का संग छोड़ कर अनियत अटवी वनों में विचरने वाले परिव्राजक ने संसार में विजय प्राप्त किया ।
पूर्व भूमिका
वैदिक धर्म में मनुष्य के आगे बढ़ने के लिये एक क्रम है, जिसको शास्त्रकारों ने आश्रम इस नाम से निर्दिष्ट किया है ।