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( ३२३ ) और निर्विकृतिक (दूध, दही, घृत, तेल, पक्वान्न आदि को छोड़ कर अन्य सामान्य) आहार से पारणा करता है, फिर दो वर्ष तक एकान्तरित उपवास और आयंबिल का तप करेगा। इसके बाद छः मास तक षष्ठ अष्टमादि सामान्य तप और आयंबिल से पारण करता है और उसके बाद के छः मास तक विकृष्ट तप (चार अथवा इससे अधिक उपवास का तप) करता है, और पारणे में आयंबिल करता है। फिर एक वर्ष तक निरन्तर मायंबिल करता है, और बारह वर्ष पूर्ण हो जाने के बाद वह किसी पर्वत की गुफा में जाकर “पादपोपगमन" नामक अनशन करता है।
अनशन के तीन प्रकार भक्त परिना इंगिणि पायव गमणं च होइ नायव्वं । जो मरइ चरिम मरणं भाव बिमुक्खं वियाणाहि ॥२६३॥ सपरिकमेय अपरिकमे य बापाय आणु पुत्रीए । सुत्तत्थ जाण एणं समाहि मरणं तु कायव्वं ॥२६४॥
प्राचा० सू० विमो० अ० उद्द० १-पृ २६१ अर्थः-अनशन तीन प्रकार के होते हैं । १- भक्त परिक्षाभक्त प्रव्याख्यान, २- इंगिनीमरण, और ३- पादपोपगमन, ये तीन प्रकार जानने चाहिए । जो श्रमण अन्तिम मरण ( पादपोपगमन ) से मरता है उसका भाव मोक्ष होता है यह समझना चाहिए । इन तीन प्रकार के अनशनों में भक्त परिज्ञा