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( ३१६ ) हैं। कम दिन के महीनों में कुल सत्रह दिन घटते हैं, तब अधिक दिनों वाले पांच महीनों में उतने ही दिन बढ़ जाते हैं। फलस्वरूप .. सलोह महीने बराबर प्रकर्म मास बन जाते हैं । गुणरत्नसंवत्सर तप प्रायः जैन श्रमण किया करते थे।.
चन्द्र प्रतिमा तप चन्द्र प्रतिमा तप दो प्रकार का होता है । यवमध्य चन्द्र प्रतिमा : तप और वमध्य चन्द्र प्रतिमा तप ।
यवमध्य चन्द्र प्रतिमा तप श्रमण शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन एक दत्ति भोजन की। और एक ही दत्ति पानी की लेकर आहार पानी करे । इसी प्रकार शुक्ल द्वितीया को दो आहार की और दो पानी की, तृतीया को तीन श्राहार की और तीन पानी की, इसी प्रकार क्रमोत्तर वृद्धि से एक एक भिक्षा दत्ति को बढाता हुआ, पूर्णिमा को पन्द्रह आहार की तथा पन्द्रह पानी की दत्तियां ग्रहण करें। ण प्रतिपदा के दिन पन्द्रह आहार की और पन्द्रह पानी की दत्तियां लेकर एक एक घटाता जाय, कृष्ण द्वितीया को चौदह, तृतीया को तेरह, यावत् अमावस्या को एक दत्ति आहार की और एक पानी की ग्रहण करें। इस प्रकार के तप को यवमध्य चन्द्र प्रतिमा तप कहते हैं। - भिक्षा की दत्ति का तात्पर्य यह है कि निर्दोष कल्पनीय आहार हाथ में लेकर श्रमण के पात्र में गृहस्थ एक बार डाले वह एक दत्ति