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( २८७ ) बुद्धिमत परिषद में जाने वालों की प्रतिभा को विकसित करने तथा हाजिर जवाबी का मुण उत्पन्न करने के लिये सभ्यों का अनेक प्रश्नों द्वारा तैयार किया जाता था। जैसे "अमुक मान्यता वाला वादी आया है, उसको क्या उत्तर दोगे" इत्यादि प्रश्न पूछ कर उनके उत्तर ढूढने के लिये सभ्यों को कहा जाता था । जिन्हें वे अपनी तार्किक कल्पनाओं से वास्तविक उत्तरों को ढूंढ निकालते अथवा तो पूछ कर खरा उत्तर प्राप्त करते । इस प्रकार इस परिषद् में बुद्धिमान् श्रमणों की बाद विषयक प्रतिमा को बढाया जाता था। ॥३८६|| __चौथी परिषद् को मन्त्री परिषद् कहा गया है । इस परिषद् के पार्षद वे श्रमण हाते थे, जिन्होंने कि प्रव्रज्या लेने के पहले अथवा बाद "शङ्गनादित विधि" का अनुभव किया होता था, तथा लौकिक वैदिक और जैन शास्त्रों का अध्ययन करके ज्ञान प्राप्त किया होता था। ॥३८६।
मन्त्री परिषद् का विशेष स्पष्टीकरण यह हे-जिन श्रमणों ने प्रव्रज्या लेने के पूर्व गृहस्थाश्रम में रहते हुए राजनीति शास्त्र द्वारा प्रवीणता प्राप्त की होती, अथवा श्र..ण बनने के बाद उक्त विद्वत्ता प्राप्त कर लेते | वे सब कार्यों में चोटी के कार्य जो 'शङ्गनादित' कहलाते हैं। जैसे किसी दुष्ट विधर्मी द्वारा जिनचैत्य, देवद्रव्य का विनाश, साधुओं को भोजन तथा उपधि देने से रोकना, श्रमणों को ब्राह्मण आदि को अभिवादन करने की माज्ञा तथा श्रमणों को बन्दी खाने में डालना और मार-पीट