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कराया करते थे, यह ऊपर कहा जा चुका है। इसके अतिरिक्त श्रमण अपने समुदाय में से पांच प्रकार की सभाओं का निर्माण करके श्रमणों को सूत्र पाठन के साथ साथ विशेष प्रकार की योग्यता प्राप्त कराया करते थे, जिसका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है ।
पांच परिषदें
पठित तथा अभ्यासी श्रमणों में से पांच प्रकार की परिषदे स्थापित की जाती थीं । जिनके नाम तथा कर्त्तव्य निम्नोद्धृत कल्प भाष्य की गाथाओं से ज्ञात होंगे।
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वास गमादीया सुत्कड पुरंतिया भवे परिसा । दसमादि उवरिम सुया, हवति उच्छतंतिया परिसा || ३८ ४ || लोय - वेइय सभाइयेसु, सत्थेसु जे समो गाढा
स समय पर समय विसारया य कुसलाय बुद्धिमती ॥ ३८५ || सन्नपती भत्त खेय परिस्सम जंतो तहा सत्थे । कहमुत्तरं च दाहिसि, अमुगो किर आगतो वादी || ३८६ ॥ पुव्वं पच्छा जेहिं सिंगणादि तविधी समणुभृतो । लोए वेदे समए क्या गुप्मा मंति परिसाउ ॥ ३८७॥ गवा से सत्थेहिं को विधा के समण भावस्मि ।
कज्जे सु सिंह भूयं तु सिंग नादि भवे कज्जं ॥ ३८८ ॥ तं पुण चेहय नासे तद्दव्वविणास दुविह भेदे । भत्तो वहिवोच्छेदे, अभित्रायण - बंध- पायादी ॥ ३८६ ॥