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कहते थे । इस प्रकार श्रमण तथा श्रमणी - गरण का शासन व्यवस्थित रूप से चलता था ।
उक्त गाथा में आचार्य आदि सात अधिकारियों का उल्लेख किया गया है, परन्तु इनमें मुख्य अधिकार सम्पन्न पुरुष पांच ही हैं । (१) आचार्य, (२) उपाध्याय, (३) प्रवर्त्तक, (४) स्थविर, और (५) गणावच्छेदक । गणी और गणधर ये उक्त अधिकारियों के कार्य को विशेष सरल करने के लिये रक्खे जाते थे ।
इस विषय में निशीथ भाष्यकार नीचे के 'अनुसार लिखते हैंतत्थ न कप्पड़ वासो, गुणागरा जत्थ नत्थि पञ्च इमे । आयरिय उवज्झाए, पवित्ति थेरो य गीयत्थो ।
अर्थ-उस गच्छ में रात भर के लिये भी रहना उचित नहीं जहां गुण के आगर आचार्य १, उपाध्याय २, प्रवर्त्तक ३, स्थविर ४, और गीतार्थ' अर्थात् गणावच्छेदक ये पांच नहीं हैं ।
संघ
ऊपर कह चुके हैं कि श्रमणों के सम्पूर्ण गणों के समुदाय का नाम संघ था । संघ सम्बन्धी कार्यों की व्यवस्था के लिए भी एक युग प्रधान आचार्य संघ स्थविर के नाम से नियुक्त किये जाते थे । कुल स्थविर के कार्य में हस्तक्षेप करने का और उनके फैसलों को
१ - 'गीतार्थी गणावच्छेदिनः " इस प्रकार निशीथ चूर्णीकार ने गीतार्थ का अर्थ गरगावच्छेदक किया है ।