________________
( २४६ ) यह पात्र सम्बन्धी उपकरण समुदाय है। तीन प्रोढने के वस्त्र ८, ९, १०, दो सूती, एक ऊनी, रजोहरण ११, और मुखवस्त्रिका १०, यह उपधि पात्र भोजी और तीन वस्त्रधारी जिन कल्पिक श्रमणों का है।
- जिन कल्पिक श्रमणों का वैविध्य जिण कप्पिया वि दुविहा, पाणिपाया पडिग्गहधराय । पाउरण मपाउरणा; एक्केका ते भवे दुविहा ।।४६४॥ दुग तिग चउक्क पणगं, दस एकारसेव वारसगं । ए ए अट्ट वियप्पा, जिण कप्पे हुंति उबहिस्स ॥४६॥
अर्थः-जिन कल्पिक श्रमण दो प्रकार के होते हैं। एक हस्त भोजी दूसरे पात्रधारी, इन प्रत्येक के दो दो भेद होते हैं प्रावरक ( वस्त्र प्रोढ़ने वाले ) दूसरे वस्त्र हीन । जिन-कल्पियों के पाणिपात्रादि भेद से उनकी उपधि के कुल पाठ भेद पड़ते हैं। दो प्रकार की, तीन प्रकार की, चार प्रकार की, और पांच प्रकार की, ऐसे पाणिपात्र जिन कल्पिक श्रमणों की उपधि के चार भेद होते हैं । इसी प्रकार पात्रधारी जिन कल्पिकों की उपधि भी चार प्रकार की होती है नवविध, दशविध, एकादश विध और . शादर्श विध जिसका वर्णन नीचे की गाथाओं में दिया जाता है। पुतिरयहरणेहि, दुविहो सिविही य एक्ककप्पगुभो । चउहा कप्प दुएणं, कप्पति गेणं तु. पंचविहीं ॥४६६॥ दुविहो तिविहो चउहा, पंच विहोऽविस पाय निज्जोगो ।