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में पर्याप्त वृद्धि हुई । कपड़ा जो पहले कन्धे पर पडा रहता था उसे ओढ कर चलने का रिवाज चला, गुह्य भाग ढाकने के लिये अग्रावतार व रक्खा जाता था, उसको सदा के लिये हटाकर Shares froन्तर बांधे रखने की पद्धति चली । औधिक उपधि के अतिरिक्त औपग्रहक इस नाम से अन्य कितने ही उपकरण और बढ़ा दिये गये । इन सभी बातों का पता हमें निम्नोद्ध त गाथाओं से लगता है
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दो पाया गया अतिरेगं तइयं च माणायो । धारते पाणक्कढण भारे पडिलेह पडिमंथो || २१३ ॥ दिनज्जरक्खि एहिं दसपुर नयरंमि उच्छु घर नामे | वासावासठि एहिं गुण निप्पति बहुं नाउं ॥ २२२॥
( व्यवहार भाष्य
अर्थ - श्रमण को पात्र रखने की आज्ञा दी गई है इस मान से अधिक तीसरा पात्र रखने पर त्रस जीव बिराधना. भार, प्रति लेखना, में काल व्यय आदि अनेक दोष होते हैं, द्वितीय पात्र की आज्ञा देने वाले, आचार्य रक्षित का परिचत्र देते हुए भाष्यकार कहते हैं, दसपुर नगर के बाहर इतु घर नामक वाटिका में वर्षा - वासस्थित आर्य रक्षित सूरिजी ने अधिक गुण की प्राप्ति जानकर श्रमणों को द्वितीय पात्र रखने की आज्ञा दी।
मह भणियं पिसुए, किंची कालाइ कारणा विक्खं । आन मनह चिय, दीसह संविग्र नीएहि ॥ १ ॥