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( २४२ )
विहार चर्या
पट निकाय -
पुढवी जीवा पुढो सत्ता, आउ जीवा तहा गणी बाउ जीवा पुढो सत्ता, तण रूक्खा सवीयणा ||७||
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अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय अहिया । marar arrare, गावरे कोई विज्जई ||८|| सव्वाहिं ऋजुतीहि मति मं पडिले हिया । सच्चे अक्कंत दुःखायो, अतो सव्वे न हिंसया ||६|
'अर्थ'पृथ्वीकाय के जीव पृथ्वी पर रहे हुए जीवों से पृथक हैं, काय और निकाय के जीव भी इन पर देखे जाने वाले चलते फिरते जीवों से भिन्न होते हैं। इसी प्रकार वायु तथा हरियाली वनस्पतियों के जीव उन पर रेंगने वाले कीट पतड़ों से भिन्न होते हैं।
इनके अतिरिक्त बड़ा स ( चलने फिरने वाले) जीवों का निकाय है । इन छः निकायों के अतिरिक्त और कोई जीव- निकाय नहीं है ॥ ८ ॥
बुद्धिमान् निर्ग्रन्थ भिक्षु सर्व उपायों से इनको दृष्टि में रक्खे, क्योंकि सर्व निकाय के प्राणी दुःख को नहीं चाहते और सब मरण से डरते हैं, अतः किसी को पीडित न करे, न उनकी हिंसा करे ||६||
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