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________________ ( २३८ ) बताकर निमन्त्रण करता है कि इसमें से कुल लीजिये, इसका निमन्त्रणा समाचारी कहते हैं। १०-"उपसंपवा" ( उपसंक्दा) उपसम्पदा अनेक प्रकार की होती है, ज्ञानोपसम्पदा, पर्शनोपसम्पदा, चारित्रोषसम्पदा, मार्गोपसम्पदा । ज्ञान विशेष पढ़ने के निमित्त दर्शन प्रभावक शास्त्रों के पढने के निमित्त, चारित्र्य (विशेष शुद्ध चारित्र पालने किसी किसी तपस्थी की सेवा करने आदि के) निमित्त, और लम्बे बिहार के निमित्त इनके जानने बालों के आश्रय में रहना इसका नाम उपसम्पदा सामाचारी है। - जैन श्रमणों का बिहार क्षेत्र 'जैन सूत्रों के निर्माण काल में नीचे लिखे देशों की भूमि प्रार्यक्षेत्र माना जाता था, और जैन श्रमण श्रमणियों को उसी पार्यक्षेत्र में बिहार करने की आज्ञा थी। इन देशों के बाहर के चारों तरफ की भूमि को जैनशास्त्रों में अनार्य भूमि माना है, और वहां जैन श्रमणों का विहार निषिद्ध किया है । कल्प में आर्य देशों तथा उनकी राजधानियों का सूचन करने वाली निम्नलिखित 'गाथायें उपलब्ध होती हैं। . रायगिह मगहचम्पा, अंगा तह तामलिति वंगाय। कंचखपुरं लिंगा, वाराषसि चेव कासीये ॥ साकेत कोसना गर, पुरं च कुरु सोरियं कुसहाय । कपिलं पंचाला, अहिछचा जंगला चेव ॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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