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________________ __-२१४ ) । परन्तु बुद्ध ने यह कह कर प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि मैं किसी को इन नियमों के लिये बाध्य नहीं कर सकता। कोई इन नियमों के अनुसार चलना चाहे तो चल सकता है, मैं उससे विरुद्ध नहीं हूँ । पर ऐसा न करने वालों को मैं दूषित नहीं मानूगा । बुद्ध के इस उत्तर से निराश हो देवदत्त अपने साथ वाले पांच सौ भिक्षुओं को लेकर उनसे जुदा हो गया। बुद्ध तथा देवदत्त के बीच उक्त प्रकार से उत्पन्न हुए विरोध को तूल देकर बौद्ध लेखकों ने कितना भयङ्कर बना दिया है, इसका खयाल नीचे लिखे उद्ध. रणों के शब्दों से आयेगा देवदत्तो पापायिको नेरविको कप्पट्ठो अतेकिच्छो । कतमेहि तीहिर पापिच्छताय भिक्खवे अभिभूतो परियायदिन्न चित्तो देवदत्तो पापायिको नेरयिको कप्पट्ठो अतेकिच्छो । पापमित्ताय भिक्खवे अभिभूतो परियादिन्न चित्तो देवदत्तो आपायिको नेरयिको कप्पट्ठो अतेकिच्छो । सति खो पन उत्तरिकरणीये भोरभक्तकेन विसेसाधिगमेन च अन्तरा वोसानं आपादि । इमेहि खो भिक्खवे तीहि असद्धम्मे हि अभिभूतो परियादिन्न चित्तो देवदत्तो श्रापायिको नेरयिको कप्पट्ठो अतेकिच्छोति । ::. मा जातु कोचिलोकस्मि, पापिच्छो उपपज्जथ । तदमिनापि जानाण, पापिच्छानं यथामति ॥ पण्डितोऽषि समञ्जातो, भावितत्तोऽति सम्मतो। जलं वा यससा अट्ठा, देवदत्तोति मे सुतं ॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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