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( १६४ ) जुदा बताया है । निशीथाध्ययन में बताये गये विकृति द्रव्यों की संख्या नव से भी कम है, तब चुल्ल काप सुय में निश्चित रूप से नव विकृतियां कही हैं। जिनमें अन्तिम विकृति मांस नामक खाद्य पदार्थ है। पिछले ग्रन्थकारों ने मांस को जुदा बताया, उसका कारण यही है कि उनके समय में अधिकांश लोग प्राण्यङ्ग मांस खाने लग गये थे। . -यह अवतरण “सूर्य प्रज्ञप्ति” नामक सूत्र का है। पूर्वकाल में जब कि बार, राशि, लम आदि का व्यवहार ज्योतिष में नहीं था उस समय का यह ग्रन्थ है । उस काल में कोई भी काम करते समय नक्षत्र का बल ही कार्यसाधक माना जाता था। प्रत्येक नक्षत्र के दिन भोजन के पदार्थ बताये गये थे, जिससे कोई भी विशेष काम करने वाला उस दिन के नक्षत्र से प्रतिबद्ध खाना खाकर अपने उद्दिष्ट कार्य में प्रवृत्त होता था। सूत्रकार ने सर्वनक्षत्रों से प्रतिबद्ध भोजनों का निर्देश किया है, परन्तु मुद्रित "सूर्य प्रज्ञप्ति" के उद्ध त अवतरण में मूल तथा धनिष्ठा इन दो नक्षत्रों के नाम तथा इनसे प्रतिबद्ध भोजनों का निर्देश नहीं है । सम्भव है कि जिस मूलादर्श पुस्तक के आधार पर यह ग्रंथ छपा है, उसमें उक्त दो नक्षत्रों का उल्लेख न होगा, अथवा प्रेस कोपी में लेखक के दृष्टि दोष से उक्त दो नक्षत्र रह गये हैं. अस्तु ।
' इस अवतरण में आठ नक्षत्रों के साथ मांस भोजन का प्रयोग हुआ है, और आठ ही स्थानों में हमने इनका वास्तविक अर्थ में खाना बताया है, क्योंकि इस सूत्र की प्ररूपणा भगवान् महावीर