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( १८२ ) उक्त संस्कृतादिसूत्रों के अवतरणों का स्पष्टीकण
१-प्रथम अवतरण "संखडि" अर्थात् संस्कृति सूत्र का है। संखडि भिन्न भिन्न नामों से किये जाने वाले बड़े भोजन समारम्भों को कहते थे । संखडि में अनेक घृत पक्क मिष्टान्न तथा दाल भात
आदि हल्के खाद्य प्रस्तुत किये जाते थे, और देशाचार के अनुसार भोजन परोसने की रीतियां भी भिन्न भिन्न थीं। किसी देश में पक्कान पहले परोसे जाते थे और ओदन दाल अादि पीछे तब किन्हीं भोजों तथा देशों में यह परिपाटी थी कि ओदन आदि लघु भोज्य परिमित मात्रा में पहले परोसे जाते थे फिर गरिष्ठ भोज्य ।
(१) जो गरिष्ठ खाद्य पदार्थ होते उनमें प्रथम नम्बर का खाद्य मांस कहलाता था, जो घी शक्कर पिष्ट, आदि से बनाया जाता था और उसमें केशर अथवा रक्त चन्दन का रङ्ग मिलाया जाता था।
(२) पके मीठे फलों को छील कर उनके बीज या गुठलियां निकाल कर तैयार किया हुआ फलों का गूदा तथा मेवों का गूदा भी मांस कहलाता था।
(४) प्राण्यङ्ग सम्भव तृतीय धातु को भी मांस कहते थे, परन्तु अविपूर्वकाल में पहाडी लोगों के अतिरिक्त उसे कोई खाता नहीं था।
बड़े भोजों में हल्का खाद्य कोदों के तन्दुल, ब्रीहि के तन्दुल