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( १७२ ) अनिष्ट की चिन्ता से मालुका कच्छ के भीतर रो रहा है तुम जाओ और उसे यहां ले आओ। . भगवान् की आज्ञा पाकर निर्ग्रन्थ श्रमण वन्दन नमस्कार कर के मालुका कच्छ की तरफ रवाना हुए और सिंह अनगार के निकट जाकर बोले, हे सिंह ! चलो तुम्हें धर्माचार्य बुलाते हैं, तब सिंह आये हुए श्रमणों के साथ भगवान महावीर के पास पहुंचा
और बन्दन कर खड़ा हुआ । सिंह को सम्बोधन कर महावीर ने कहा, सिंह ! क्या तू मेरे भरण की अशंका से रो पडा ? सिंह ने कहा, हां भगवन् ! महावीर बोले सिंह ! मैं छः मास के भीतर नहीं मरूंगा, मैं अभी साढ़े पन्द्रह वर्ष तक सुख पूर्वक जिन रूप में विचरूंगा । इस वास्ते हे सिंह ! तू में ढिका गांव में रेवती गाथापतिनी के घर जा। उसने मेरे लिये दोकूष्माण्ड फल पका कर तैयार किये हैं, उनकी तो आवश्यकता नहीं है पर उसके यहां कुछ दिन पहले अगस्त्य की शिम्बाओं के मावे में सुनिषण्णक ('कुक्कुट) वनस्पति के कोमल पत्तों से तैयार किया, घन मिला कर तैयार किया हुआ औषधीय पाक पड़ा हुआ है-उस की आवश्यकता है, सो ले आ। ... .. ..
टिप्पणी-१. कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी कुक्कुट शब्द का प्रयोग वनस्पति के ही अर्थ में हुआ है, देखिए.. "कुक्कुट कोशातकी शतावरी मूलयुक्त माहारयमाणो मासेन गौरो भवति" ___ अर्थ–सुनिषण्णक कुक्कुट कोशातकी ( तुरई ) शतावरी इनके मूलों के साथ एक मास तक भोजन करने वाला मनुष्य गौर वर्ण हो जाता है।